मदर टेरेसा की जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टेरेसा की जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

 

मदर टेरेसा

(Mother Teresa)

रोमन कैथोलिक नन ।

 

मदर टेरसा एक रोमन कैथोलिक नन थीं, जो उस समय के उस्मान साम्राज्य कि नागरिक थी, लेकिन वर्ष 1948 में उन्होंने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली थी। वर्ष 1950 में मदर टेरेसा ने कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की, और 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की मदद  करने के साथ-साथ मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।

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मदर टेरेसा को गरीब, बीमार, असहाय लोगों की मदद करने और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहने के लिए वर्ष 1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार और 1980 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्य लगातार बढ़ता चला गया और उनकी मृत्यु तक यह संस्था 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थीं। 

 

इस संस्था के द्वारा एचआईवी (एड्स), कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं (घर) शामिल थे, और साथ ही सूप, रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय भी थे। मदर टेरसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें ‘धन्य’ घोषित किया और कोलकाता के ‘धन्य’ की उपाधि प्रदान की। 

 

5 सितंबर 1997 को दिल का दौरा पड़ने के कारण मदर टैरेसा की मृत्यु हो गई थी।

मदर टेरेसा की जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टेरेसा की जीवनी | Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टेरेसा का जीवन परिचय : एक नजर में ।

 

नाम  :   मदर टेरेसा (Mother Teresa)

असली नाम  :   अगनेस गोंझा बोयाजिजू

जन्म  :   26 अगस्त 1910

जन्म स्थान  :   उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, उत्तर मैसिडोनिया)

पिता  :   निकोला बोयाजू

माता  :   द्राना बोयाजू

पेशा  :   रोमन केथोलिक, नन

राष्ट्रीयता  :   भारतीय नागरिक (वर्ष 1948 से 1997 तक)

मृत्यु  :   5 सितम्बर 1997 (उम्र 87) कोलकाता, भारत

 

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मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन।

 

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को उस्मान साम्राज्य के उस्कुब (वर्तमान मे मेसीडोनिया) में एक अल्बेनीयाई परिवार हुआ था। उनका का असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का मतलब ‘फूल की कली’ होता है।

 

उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और उनकी माता का नाम द्राना बोयाजू था। उनके पिता पेशे से एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा कुल 5 भाई-बहन थीं, और अपने पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। इनके जन्म के समय इनकी बड़ी बहन की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी, बाकी दो भाई बचपन में ही गुजर गए थे।

 

मदर टेरेसा जब आठ साल की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद इनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी इनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। 

 

 

शिक्षा ।

 

मदर टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढ़ाई के साथ-साथ, उन्हें गाना गाना भी बेहद पसंद था। वे और उनकी बड़ी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिकाएँ थीं। ऐसा माना जाता है कि जब वे महज 12 वर्ष की थीं तभी उन्हें इस बात का आभास हो गया था कि, वे अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी, और जब वे 18 वर्ष की हुई तो उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला किया। 

 

इसके बाद मदर टेरेसा आयरलैंड गयीं, और वहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।

 

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मदर टेरेसा द्वारा आजीवन सेवा का संकल्प ।

 

वर्ष 1981 में मदर टेरेसा ने अपना नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ से बदलकर मदर टेरेसा कर लिया, और आजीवन सेवा करने का संकल्प लिया।

 

उन्होने स्वयं लिखा था कि- “वह 10 सितम्बर 1940 का दिन था, जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी। उसी समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी थी, कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर एवं दरिद्र नारायण की सेवा कर के कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।”

 

 

निस्वार्थ और एक समान भाव से पीड़ितों कि सेवा ।

 

मदर टेरेसा दलितों एवं पीडितों की सेवा पूरे निस्वार्थ भाव से करती थी और उनके मन में किसी भी प्रकार का कोई पक्षपात नहीं था। 

 

मदर टेरेसा का कहना था कि- “सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है, और इसके लिए पूर्ण समर्थन की आवश्यकता है। वही लोग इस कार्य को संपन्न कर सकते हैं, जो प्यार एवं सांत्वना की वर्षा करें, भूखों को खिलायें, बेघर लोगों को शरण दें, दम तोड़ने वाले बेबसों को प्यार से सहलायें, अपाहिजों को हर समय ह्रदय से लगाने के लिए तैयार रहें।”

 

उन्होनें लोगों के मन में सद्भावना का भाव बढ़ाने के लिए पूरे विश्व भर का दौरा किया। उनका ऐसा मानना था कि ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है।’ 

 

उनसे प्रेरणा लेकर दुनिया भर के अलग-अलग भागों से स्वय्ं-सेवक भारत आये और तन, मन, धन से गरीबों की सेवा में लग गये। 

 

 

 मदर टेरेसा से जुड़े विवाद ।

 

मदर टेरेसा के काम से बहुत से अलग-अलग देशों की सरकारों ने उनकी प्रशंसा भी की लेकिन उन्हें कई बार आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। जिसमें कई जाने-माने लोग जैसे- क्रिस्टोफ़र हिचन्स, अरूप चटर्जी (विश्व हिन्दू परिषद), माइकल परेंटी, और भी कई लोगों द्वारा उनकी आलोचना की गई थी। जिसमें कई चिकित्सा पत्रिकाओं में भी उनके धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और अपारदर्शी प्रकृति के बारे में भी सवाल उठाए गए, जिसमें दान का धन खर्च किया जाता था।

 

इसके अलावा, कनाडा के तीन शिक्षाविद- सर्ज लारिवे, जेनेवीव चेनेर्ड और कैरोल सेनेचल के एक पत्र के अनुसार, टेरेसा के क्लीनिक को दान में लाखों डॉलर मिले, लेकिन दर्द से जूझते लोगों के लिए चिकित्सा देखभाल, व्यवस्थित निदान, आवश्यक पोषण और पर्याप्त एनाल्जेसिक की पर्याप्त मात्रा नहीं थी। इन तीन शिक्षाविदों ने आगे बताया की, “मदर टेरेसा का मानना था कि बीमार लोगों को क्रॉस पर क्रास्ट की तरह पीड़ा झेलना चाहिए।”

 

उन्होंने आगे यह भी बताया कि-  दान में मिलने वाले अतिरिक्त धन का प्रयोग उन्नत प्रशामक देखभाल (palliative care) सुविधाएँ मुहैया कराके शहर के गरीबों का स्वास्थ्य सुधार जा सकता था।

 

उनपर पाखण्डी होने का आरोप भी लगाया जाता है, और कहा जाता है कि- उन्होंने ग़रीबों को अपनी पीड़ा सहन करने के लिए तो कहा, लेकिन जब वे स्वयं बीमार पड़ीं, तो उन्होंने सबसे उच्च-गुणवत्ता वाले महँगे अस्पताल में अपना इलाज कराया। 

 

मदर टेरेसा पर और भी कई आरोप लगे थे जिसमें,  मरते हुए लोगों का बपतिस्मा करके ज़बरन धर्मपरिवर्तन करना, गर्भपात समेत अन्य महिलाधिकारों का विरोध करना, तानाशाहों और विवादास्पद लोगों  का समर्थन करना करना, अपराधियों से पैसा लेना आदि शामिल है। 

 

वर्ष 2017 में, एक खोजी पत्रकार, जिनका नाम  जियानलुइगी नुज़ी है, उन्होंने बताया कि-  वेटिकन के एक बैंक में मदर टेरेसा के नाम पर उनकी चैरिटी द्वारा जुटाई गई धनराशि अरबों डॉलर में थी। दुनिया भर से भारी मात्रा में दान में पैसा मिलने के बावजूद, उनके संस्थानों की हालत दयनीय थी। 

 

 

मदर टेरेसा को मिले पुरस्कार और सम्मान

 

1931 :  पोपजान तेइसवें का शांति पुरस्कार ।

 

1931 :  धर्म की प्रगति के टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार। विश्व भारती विध्यालय ने उन्हें देशिकोत्तम पदवी दी, जो कि उसकी ओर से दी जाने वाली सर्वोच्च पदवी है। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने उन्हे डोक्टोरेट की उपाधि से विभूषित किया। 

 

1962 :  भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ पुरस्कार।

 

1988 :  ब्रिटेन द्वारा ‘ईयर ऑफ द ब्रिटिश इम्पायर’ की उपाधि।

 

1988 :  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी-लिट’ की उपाधि से सम्मानित।

 

1979 :  मानव-कल्याण कार्यों हेतु नोबेल पुरस्कार। वे तीसरी भारतीय नागरिक है, जो संसार में इस पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं। 

 

2016 :  वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से सम्मानित किया। 

 

इसके अलावा भी मदर टेरेसा को कई पुरस्कार से विभूषित किया जा चुका है।

 

 

मदर टेरेसा के विचार (Ideology) ।

 

“आप दुनिया में प्रेम फ़ैलाने के लिए क्या कर सकते हैं ? घर जाइये और अपने परिवार से प्रेम कीजिये।”

“प्रेम की शुरुआत निकट लोगो और संबंधो की देखभाल और दायित्व से होती है, वो निकट सम्बन्ध जो आपके घर में हैं।”

“अगर आप यह देखेंगे की लोग कैसे हैं, तो आप के पास उन्हें प्रेम करने का समय नहीं मिलेगा।”

“शब्दों से मानव-जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।”

“यदि आप सौ लोगो को नहीं खिला सकते तो एक को ही खिलाइए।”

“दया और प्रेम भरे शब्द छोटे हो सकते हैं, लेकिन वास्तव में उनकी गूँज अन्नत होती है।”

“मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित हों।”

“जिस व्यक्ति को कोई चाहने वाला न हो, कोई ख्याल रखने वाला न हो, जिसे हर कोई भूल चुका हो, मेरे विचार से वह किसी ऐसे व्यक्ति की तुलना में जिसके पास कुछ खाने को न हो, कहीं बड़ी भूख, कही बड़ी गरीबी से ग्रस्त है।

“शांति की शुरुआत मुस्कराहट से होती है।”

“छोटी चीजों में वफादार रहिये क्योंकि इन्ही में आपकी शक्ति निहित है।”

 “जो आपने कई वर्षों में बनाया है वह रात भर में नष्ट हो सकता है, तो भी क्या आगे बढिए उसे बनाते रहिये।”

“पेड़, फूल और पौधे शांति में विकसित होते हैं, सितारे, सूर्य और चंद्रमा शांति से गतिमान रहते हैं, शांति हमें नयी संभावनाएं देती है।”

“कुछ लोग आपकी ज़िन्दगी में आशीर्वाद की तरह हैं, और कुछ लोग एक सबक की तरह।”

“जहाँ जाइये प्यार फैलाइए, जो भी आपके पास आये वह और खुश होकर लौटे।”

“प्रेम हर ऋतू में मिलने वाले फल की तरह है जो प्रत्येक की पहुँच में है।”

“कल जा चुका है, कल अभी आया नहीं है, हमारे पास केवल आज है, चलिए शरुआत करते हैं।”

“अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धियों के बीच का पुल हैं।”

“भगवान यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों। वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि हम प्रयास करें।”

“एक जीवन जो दूसरों के लिए नहीं जीया गया वह जीवन नहीं है।”

“हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते लेकिन हम अन्य कार्यों को प्रेम से कर सकते हैं।”

“मैं सफलता के लिए प्रार्थना नहीं करती  मैं सच्चाई के लिए करती हूँ।”

“जब भी एक दूसरे से मिलें मुस्कान के साथ मिलें, यही प्रेम की शुरुआत है।”

“जहाँ जाइये प्यार फैलाइए। जो भी आपके पास आये वह और खुश होकर लौटे।”

“यह महत्वपूर्ण नहीं है आपने कितना दिया, बल्कि महत्वपूर्ण यह है, की देते समय आपने कितने प्रेम से दिया।”

“खूबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते। लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते है।”

मदर टेरेसा के बारे में पूछे गए प्रश्न ।

 

प्रश्न :  मदर टेरेसा कौन है ? 

उत्तर :  रोमन केथोलिक, नन।

 

प्रश्न : मदर टेरेसा का जन्म कब हुआ था ? 

उत्तर : 26 अगस्त 1910 को।

 

प्रश्न : मदर टेरेसा की मृत्यु कब और कहां हुई थी ? 

उत्तर : 5 सितम्बर 1997 को 87 वर्ष कि उम्र मे, कोलकाता, भारत मे।

 

प्रश्न : मदर टेरेसा की मृत्यु किस कारण से हुई थी ?

उत्तर :  दिल का दौरा पड़ने के कारण कैंसर के कारण।

 

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 आभार ।

 

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