श्रीनिवासन रामानुजन की बायोग्राफी | Srinivasan Ramanujan Ki Biography in Hindi

 

श्रीनिवासन रामानुजन की बायोग्राफी | Srinivasan Ramanujan Ki Biography in Hindi

“मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है, जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार ना मिलते हो।

– श्रीनिवासन रामानुजन।

श्रीनिवासन रामानुजन एक महान भारतीय वैज्ञानिक गणितज्ञ थे और इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विश्लेषकों में गिना जाता था जाता है उन्होंने गणित में कोई विशेष शिक्षा हासिल नहीं की थी और ना ही उन्हें गणित के क्षेत्र में कोई विशेष प्रशिक्षण मिला था। परंतु उन्होंने ‘विश्लेषण’ एवं ‘संख्या पद्धति’ (Number System) के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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बचपन से ही इनमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं रही और इन्होंने खुद से ही गणित सीखकर अपने पूरे जीवन काल में गणित के कुल 3884 प्रमेयों (theorem) का संकलन किया। इनके द्वारा संकलित किए गए अधिकांश प्रमेयों को सही सिद्ध किया जा चुका है। हालांकि इनके कुछ खोजो (प्रमेयो) को गणित की मुख्यधारा में अभी तक नहीं अपनाया गया है, परंतु इनके द्वारा सिद्ध किए गए प्रमेयों पर शोध किया जा रहा है। कुछ समय पहले ही इनके प्रमुख सूत्रों (formulas) में से कुछ सूत्रों (formulas) उसको क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया जा चुका है।

श्रीनिवासन रामानुजन की बायोग्राफी | Srinivasan Ramanujan Ki Biography in Hindi

श्रीनिवासन रामानुजन की बायोग्राफी | Srinivasan Ramanujan Ki Biography in Hindi

रामानुजन् का जीवन परिचय एक नजर में।

नाम  :   श्री निवासन रामानुजन् अयंगर 

जन्म  :   22 दिसंबर 1887 

जन्म स्थान  :   तंजौर, इरोड (तमिलनाडु)

माता  :   कोमलताम्मल 

पिता  :   श्रीनिवास अयंगर

आवास :   भारत, यूनाइटेड किंगडम (यूके) 

क्षेत्र  :   गणित

पेशा  :  गणितज्ञ

शिक्षा  :  कैंब्रिज विश्वविद्यालय 

राष्ट्रीयता  :   भारतीय

पत्नी  :   जानकी 

बच्चे  :   निसंतान

डॉक्टरी सलाहकार  :   गॉडफ्रे हैरोल्ड हार्डी और जॉन इडेंसर लिटिलवुड 

प्रसिद्धि  :   लैंडा रामानुजन स्थिरांक; रामानुजन थीटा फलन; रामानुजन अभाज्य; रामानुजन सोल्डनर स्थिरांक; रामानुजन योग; रॉजर्स रामानुजन तत्समक; कृत्रिम थीटा फलन।

मृत्यु  :   26 अप्रैल 1922 (चटपट, चेन्नई ,तमिलनाडु)

 

प्रारंभिक जीवन।

श्रीनिवासा रामानुजन् का जन्म 22 दिसंबर 1887 मे भारत के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित कोयंबटूर (तमिलनाडु) के इरोड नामक गांव में हुआ गांव में एक साधारण से ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवासन अयंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था।

एक निम्न वर्गीय परिवार में जन्मे रामानुजन के पिता कपड़े की दुकान में एक मामूली से कर्मचारी थे। रामानुजन का बचपन सामान्य बच्चों जैसा नहीं था। अपने जन्म के तीन वर्ष बाद भी रामानुजन बोलना नहीं सीख पाए थे। तीन वर्ष की आयु तक भी नहीं बोल पाने के कारण उनके परिवार वालों को उनकी चिंता होने लगी कि; कहीं वे गूंगे तो नहीं है। परंतु धीरे-धीरे सब की चिंता खत्म हो गई।

 

शिक्षा।

आने वाले समय में जब इनका दाखिला स्कूल में किया गया तो उस समय की पारंपरिक शिक्षा में उनका मन ही नहीं लगता था। लेकिन 10 वर्ष की उम्र में रामानुजन ने प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया और अपने आगे की पढ़ाई के लिए इन्होंने टाउन हाई स्कूल में दाखिला लिया। 

इनको प्रश्न पूछना बहुत ही पसंद था, और जब वे प्रश्न पूछते थे तो कभी-कभी उनके प्रश्न अध्यापकों को बहुत ही अटपटे से लगते थे। जैसे कि ‘पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है?, और धरती पर सबसे पहला इंसान कौन था? आदि…।

एक समय की बात है, छोटे बच्चों की गणित की कक्षा चल रही थी। शिक्षक ने ब्लैक-बोर्ड पर तीन केलों के चित्र बनाएं और कक्षा में उपस्थित सभी बच्चों से पूछा कि  ‘यदि हमारे पास तीन केले हों, जिन्हें 3 बच्चों में बांटना हो तो प्रत्येक बच्चों को कितने केले मिलेंगे?’

अगली पंक्ति में बैठे एक बच्चे ने बड़ी ही तत्परता से जवाब देते हुए कहा कि ‘गुरुजी, प्रत्येक को एक-एक केले मिलेंगे।’ 

प्रश्न के उत्तर से संतुष्ट होकर शिक्षक ने भाग देने की क्रिया को समझाना शुरू किया। तभी कक्षा के कोने में बैठे एक बच्चे ने एक प्रश्न किया कि ‘गुरुजी, यदि किसी को कोई भी केला ना बांटा जाए, तो क्या तब भी प्रत्येक छात्र को एक-एक केला मिल सकेगा ?’

इस तरह के प्रश्न पुछे जाने पर कक्षा में उपस्थित सभी छात्र हंसने लगे। लेकिन शिक्षक ने मेज थपथपा कर बच्चों को शांत किया उन्होंने छात्रों को प्रश्न को विस्तार से समझाया कि ‘बच्चों, यह जानना चाह रहा है कि यदि शून्य को शून्य से विभाजित किया जाए, तो क्या तब भी परिणाम एक ही आएगा?’ अध्यापक ने बच्चों को प्रश्न का उत्तर विस्तार से समझाते हुए आगे बताया इसका उत्तर शुन्य ही होगा।

इस छात्र के पूछे गए प्रश्न का हल ढूंढने में गणितज्ञों को सैकड़ों वर्ष लगे थे। छोटी सी उम्र में ऐसे गूढ़ प्रश्न पूछने वाले बालक थे श्रीनिवासन रामानुजन।

स्कूल के दिनों में उनका व्यवहार बहुत ही मधुर था और इनके कक्षा के साथियों के अनुसार, इनका व्यवहार इतना शांत और मधुर था कि कोई उनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। उनकी प्रतिभा छात्रों को ही नहीं बल्कि अध्यापकों को भी प्रभावित करती थी। वे स्कूल के दिनों में ही कॉलेज स्तर के गणित के प्रश्नों को हल कर दिया करते थे। एक बार तो इनके स्कूल के प्रधानाध्यापक ने इनके बारे में यह तक कह दिया था कि ‘स्कूल में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते।’

हाई स्कूल की परीक्षा में अंग्रेजी एवं गणित में अच्छे नंबर लाकर कक्षा में अच्छे नंबर उत्तीर्ण होने के कारण इन्हें सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में इनको दाखिला भी मिल गया। 

समय के साथ-साथ रामानुजन के गणित के प्रति रुचि इतनी बढ़ गई थी कि वह अन्य विषयों पर तो ध्यान ही नहीं देते थे, और वे जीव विज्ञान और इतिहास की कक्षा में भी गणित के ही प्रश्नों को हल किया करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि 11वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर भी सभी विषयों में फेल हो गए। इसकी वजह से उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति भी उनसे वापस ले ली गई; क्योंकि कॉलेज में आर्ट्स में प्रथम वर्ष में ही वे कई विषयों में दो बार फेल हो चुके थे। 

यह समय रामानुजन के लिए बहुत ही मुश्किल भरा समय रहा। क्योंकि एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब थी और दूसरी तरफ यह की उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलना बंद हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से इन्होंने घर की हालत सुधारने के लिए गणित के ट्यूशन देना शुरू कर दिए और साथ ही साथ बही-खाते का भी काम करने लगे। 

रामानुजन ने 1907 में एक बार फिर से 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी और इसमें भी वे फेल हो गए। इसके बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इससे उनके पिता को बहुत निराशा हुई। उनके पिता को लगा कि इस लड़के का दिमाग फिर गया है, तभी तो वह हमेशा अंको-संख्याओं में ही खेलता रहता है। उनके पिता ने सोचा कि यदि इसकी शादी कर दी जाए तो वह सही रास्ते पर आ सकता है, और उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए उनके पिता ने वर्ष 1908 में उनकी शादी कर दी।

वैवाहिक जीवन। 

वर्ष 1908 में उनकी शादी जानकी नाम की एक लड़की से हुई, जो महज 8 वर्ष की थी। लेकिन तब भी रामानुजन की गणित की यात्रा नहीं रूकी। परंतु अब उन्हें नौकरी की सख्त जरूरत थी। अपने जीने के लिए नहीं, बल्कि अपने गणित को जीवित रखने के लिए। क्योंकि गणित की खुराक थी कागज। 

आर्थिक तंगी के कारण उन्हें सड़कों पर बिखरे कागजों को उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। रद्दी के कागजों पर ही रामानुजन का गणित आकार लेने लगा और तो और रामानुजन नीली स्याही से लिखे कागजों पर लाल स्याही की कलम से लिख कर अपने गणित के शोधों को हल क्या करते थे। 

 

नौकरी की तलाश।

अपने विवाह के बाद सब कुछ छोड़कर केवल गणित में ही उलझे रहना उनके लिए संभव नहीं था। इसलिए वह नौकरी की तलाश में मद्रास आ गए। 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण ना हो पाने की वजह से उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली और उनकी सेहत भी खराब हो गई, जिसके बाद उन्हें अपने घर वापस लौटना पड़ा। सेहत में सुधार होने के बाद वह दोबारा नौकरी की तलाश में मद्रास आए। 

वे जब भी किसी से मिलते तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाया करते। इस रजिस्टर में इनके द्वारा गणित में किए गए सभी कार्य होते थे। एक व्यक्ति ने रामानुजन के रजिस्टर को देखकर उन्हें वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिलने की सलाह दी। श्री वी. रामास्वामी अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। 

जब रामानुजन उनसे मिले तो उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचानते हुए उस समय के स्थानीय जिला अधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर उनके लिए ₹25 की मासिक छात्रवृत्ति का भी प्रबंध करवा दिया। इस छात्रवृत्ति पर रामानुजन एक साल तक मद्रास में रहे और अपना शोध पत्र प्रकाशित किया। इस शोध पत्र का शीर्षक था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण।” 

यह शोध पत्र ‘जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी’ में प्रकाशित किया गया था। 

उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर छात्रों और अध्यापकों के सार्थक प्रयास से उन्हें मई 1913 में मद्रास विश्वविद्यालय द्वारा ₹75 की मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की गई। हालांकि इस छात्रवृत्ति को पाने के लिए उनके पास कोई आवश्यक डिग्री नहीं थी। इसके बाद उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई थी। इस नौकरी को करते हुए उन्हें गणित के लिए पर्याप्त समय मिल जाता था। रामानुजन रात भर जग कर नए-नए गणित के सूत्र लिखा करते थे। वह अपने गणित के शोधों को पहले स्लेट पर लिखते और फिर उसे रजिस्टर में लिखा करते थे।

 

लंदन के प्रोफेसर जी.एच. हार्डी के साथ पत्र व्यवहार।

रामानुजन के एक पुराने जानकार (शुभचिंतक), जो उनकी प्रतिभा को भलीभांति जानते थे। उन्होंने रामानुजन के द्वारा किए गए शोधों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। लेकिन उन्हें इससे कुछ ज्यादा सहायता नहीं मिला, परंतु एक बहुत ही अच्छी चीज हुई कि अब लोग रामानुजन को जाने लगे थे। एक बार रामानुजन, प्रोफेसर हार्डी के शोध कार्य पढ़ रहे थे उसी समय उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर भी खोज निकाला। 

आपको बता दें कि, प्रोफेसर जी. एच. हार्डी उस समय में विश्व के सबसे प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक थे, एवं अपने अनुशासन और सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते थे।

रामानुजन ने प्रोफ़ेसर आरडी जीएच हार्डी को एक पत्र लिखा और पत्र में शोध कार्यों के साथ-साथ 120 प्रमेयो को भी भेज दिया। यहां से उनके जीवन में एक नया मोड़ आया, जिसमे प्रोफेसर हार्डी ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई। प्रोफेसर हार्डी ने ना केवल रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना, बल्कि उनकी सराहना भी की। प्रोफेसर हार्डी रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक भी रहे हैं। इन दोनों की मित्रता एक दूसरे के लिए बहुत काम आई। 

प्रोफेसर हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभावान व्यक्तियों को 100 अंक के पैमाने पर आंकने के लिए एक आयोजन रखा, जिसमें  ज्यादातर गणितज्ञों को उन्होंने 100 में से 35 अंक ही दिए; और कुछ उत्कृष्ट वैज्ञानिक गणितज्ञों को उन्होंने 60 अंक प्रदान किए; परंतु रामानुजन को उन्होंने 100 में से पूरे 100 अंक दिए थे। 

इसके पहले जब रामानुजन ने अपने शोध कार्यों को प्रोफेसर हार्डी के पास भेजा था तो, शुरुआत में उन्हें भी यह शोध कार्य पूरा समझ नहीं आ रहा था। परंतु जब उन्होंने अन्य गणितज्ञों से इस पर चर्चा की तो उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि, रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक असाधारण व्यक्ति हैं और उनके द्वारा किए गए कार्यों को समझने एवं उस पर आगे और भी नए शोध करने के लिए उन्हें इंग्लैंड जरूर आना चाहिए। इसके बाद उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया।

 

रामानुजन का विदेश आगमन।

जब प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया तब आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने प्रोफेसर हार्डी का आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इससे प्रोफेसर हार्डी को बहुत ही निराशा हुई। परंतु उन्होंने रामानुजन को किसी भी तरह से लंदन बुलाने का फैसला कर लिया था। 

कुछ ही दिनों बाद रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय में शोध के लिए वृति भी मिल गई, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ हद तक सुधार आया और उन्हें अपने शोध कार्य का पूरा समय भी मिलने लगा। इसके साथ ही लंबे पत्र संवाद (पत्र व्यवहार) के बाद प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए मना लिया, और इनके द्वारा रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए के आर्थिक सहायता व्यवस्था की गई। 

17 मार्च सन् 1914 को हुए ब्रिटेन के लिए रवाना हुए। रामानुजन ने, अपने द्वारा बनाए गए करीब 3000 से भी ज्यादा नए सूत्रों (formulas) के साथ, लंदन की धरती पर कदम रखा, जहां पर प्रोफेसर हार्डी ने पहले से ही उनके लिए उनके ठहरने की व्यवस्था कर दिया था।

लेकिन वहां का वातावरण, मौसम तथा खान-पान रामानुजन के लिए अनुकूल नहीं था। वह खाना स्वयं बनाते थे, साथ-साथ गणित कार्य भी जारी रखा। उन्होंने प्रोफ़ेसर हार्डी के साथ मिलकर उच्च कोटि के कई शोध पत्र प्रकाशित किए। 

रामानुजन के द्वारा किए गए एक शोध के लिए उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. (B.A.) की उपाधि भी मिल गई। वहां का वातावरण और रहन-सहन, वहां की जलवायु रामानुजन के लिए अनुकूल नहीं होने के कारण उनकी सेहत खराब होने लगी। जब वे डॉक्टर के पास अपने इलाज के लिए गए तो डॉक्टरों ने इसे छय रोग बताया। उस जमाने में छय रोग के इलाज के लिए किसी भी प्रकार की कोई दवा उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें सेनेटोरियम में रहना पड़ता था। और वहां भी वह गणित के नए नए शोधों में डूबे रहते थे।

 

रॉयल सोसायटी की सदस्यता। 

28 फरवरी सन् 1918 में रामानुजन को रॉयल सोसाइटी, लंदन का ‘फैलो’ चुना गया। यह सम्मान पाने वाले रामानुजन दूसरे भारतीय थे। एक ऐसे समय में जब भारत एक गुलाम देश था, तब उस समय में एक अश्वेत भारतीय व्यक्ति को यह सम्मान मिलना बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी। रॉयल सोसायटी लंदन के इतिहास में इनसे कम उम्र के किसी भी सदस्य को सदस्यता नहीं मिल सकी थी। 

रॉयल सोसाइटी की सदस्यता मिलने के बाद उसी वर्ष अक्टूबर में ही रामानुजन को ट्रिनिटी कॉलेज का ‘फैलो’ चुना गया। रामानुजन यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय भी बने।

दूसरी तरफ खराब स्वास्थ्य के कारण इनकी हालत और भी बिगड़ती जा रही थी। तब उनके डॉक्टरों ने उन्हें भारत वापस लौटने की सलाह दी।

भारत वापसी स्वदेश आगमन।

भारत लौटने पर भी इनकी सेहत में कोई सुधार नहीं आया और इनकी हालत ओर भी गंभीर होती जा रही थी। अपने खराब स्वास्थ्य की हालत में भी उन्होंने ‘मॉक थीटा फंक्शन’ पर उच्च स्तर स्तरीय शोध पत्र लिखा।

रामानुजन के द्वारा प्रतिपादित इस फलन का उपयोग गणित के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है।

 

मृत्यु। 

रामानुजन के खराब स्वास्थ्य के कारण डॉक्टरों ने भी हार मान ली। और उस महान गणितज्ञ ने 26 अप्रैल 1922 को अंतिम सांस ली और मात्र 35 वर्ष की आयु में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 

आजीवन निसंतान रहे रामानुजन ने अपना सारा जीवन गणित में ही लगा दिया। रामानुजन की स्मृति में गणित के लिए रामानुजन पुरस्कार की भी स्थापना की गई। आने वाले समय मे हर हर कोई इस महान गणितज्ञ को इसलिए भी याद करेगा, ‘क्योंकि उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष के आगे कभी घुटने नहीं टेंके।

 

रामानुजन के कार्य एवं शोध।

सन् 1976 में ट्रिनिटी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय मे रामानुजन का एक पुराना रजिस्टर मिला। जिस पर वह अपने शोध, प्रमेयों और सूत्रों को लिखा करते थे।

लगभग एक सौ पन्नों वाला यह रजिस्टर आज भी वैज्ञानिकों एवं गणितज्ञों के लिए एक अबूझ पहेली बना हुआ है। बाद में इस रजिस्टर को ‘रामानुजन नोटबुक’ का नाम दिया गया। मुंबई स्थित टाटा अनुसंधान संस्थान द्वारा इसका प्रकाशन भी किया जा चुका है। 

रामानुजन के कार्य करने की एक विशेषता यह भी थी कि पहले वे गणित के कोई सूत्र या प्रमेयों को पहले ही लिख लेते थे और उसकी उत्पत्ति पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। जब इस बारे में उनसे कुछ पूछा जाता तो वह कहा करते थे कि “यह सूत्र उन्हें उनके कुलदेवी नामगिरि देवी की कृपा से प्राप्त हुआ है।” 

इसके साथ ही वे धर्म एवं अध्यात्म में गहरी आस्था भी रखते थे। इस पर वे कहते थे कि “मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है, जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार ना मिलते हो।” 

उनकी गणित के प्रति इतनी गहरी रुचि थी कि जब वह सो रहे होते थे तो अचानक से उठकर स्लेट पर गणित के सूत्र लिखने लगते थे और फिर सो जाया करते थे। ऐसा लगता था कि मानो जैसे सोते हुए भी उनके दिमाग में कुछ गणितीय रचनाएं चल रहीं हो।

 

गणित में किए गए कार्य एवं उपलब्धियां । 

श्रीनिवास रामानुजन ने इंग्लैंड में लगभग 5 वर्षों तक संख्या सिद्धांत के क्षेत्र में काम किया है।

 

रामानुजन संख्याएँ 

‘रामानुजन संख्या’ उस प्राकृतिक संख्या को कहते हैं, जिसे दो अलग-अलग संख्याओं के घनो के योग द्वारा निरूपित किया जा सकता है।

रामानुजन संख्याएँ

                                       रामानुजन संख्याएँ

अतः 1729, 4104, 20683, 40033 आदि ‘रामानुजन संख्याएं’ हैं।

 

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