अरुणिमा सिन्हा की बायोग्राफी पार्ट-1 | Arunima Sinha ki Biography in Hindi Part-1

अरुणिमा सिन्हा की बायोग्राफी पार्ट-1 | Arunima Sinha ki Biography in Hindi Part-1

 

“अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाकी है,

अभी तो इस परिंदे का इंतिहान बाकी है।

अभी अभी तो मैंने लगा है समंदरो को,

अभी तो पूरा आसमान बाकी है।।”

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                                          – अरुणिमा सिन्हा।

अरुणिमा सिन्हा भारत कि और से राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खेलने वाली पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी एवं महिला पर्वतारोही हैं, जो ‘माउंट एवरेस्ट’ फतह करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग (विकलांग)  है। अरुणिमा ऐसी महिला है, जिन्होंने पैरों से विकलांग होते हुए भी एवरेस्ट जैसी चोटी को फतह किया। जहां लोगों के दोनों पैर सलामत रहते हुए भी हिमालय जैसे दुर्गम चोटी पर चढ़ाई करना मुश्किल हो जाता है वहां अरुणिमा सिन्हा ने वह कर दिखाया जिसे लोग उस स्थिति में करने की सोच तक नहीं सकते। 

“सब कुछ हममें है 

हम जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं।”

अरुणिमा सिन्हा जन्म से विकलांग नहीं थी। एक समय था, जब वह राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खेल कर अपनी लाइफ में खुश थी। लेकिन उनकी जीवन में कुछ ऐसा हुआ, जिसने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उसे लगने लगा कि अब उनकी लाइफ का कोई भी मकसद नहीं रह गया है, और उनका जीवन यूं ही खत्म हो जाएगा। उनके जीवन की एक घटना ने उनकी पूरी लाइफ को ही बदल दी।

अपने जीवन में हुई इस घटना के बाद उनका जीवन कुछ इस तरह से बदला कि उन्होंने अपने जीवन में नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर दिया। उनकी इस अचीवमेंट के लिए उन्हें कई सम्मान भी दिया गया। वर्ष 2015 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

अरुणिमा सिन्हा द्वारा लिखी गई उनकी किताब ‘बोर्न अगेन इन द माउंटेन’ का लोकार्पण खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। यह किताब उनकी जीवनी के बारे में बताती हैं।

अरुणिमा सिन्हा की बायोग्राफी पार्ट ‌-1 | Arunima Sinha ki Biography in Hindi

 अरुणिमा सिन्हा की बायोग्राफी पार्ट ‌-1 | Arunima Sinha ki Biography in Hindi

 

अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय : एक नजर में ।

नाम  :    अरुणिमा सिन्हा

जन्म  :   20 जुलाई 1988 

जन्म स्थान  :    अंबेडकर नगर, उत्तर प्रदेश (भारत)

राष्ट्रीयता  :    भारतीय 

शिक्षा :   नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग

व्यवसाय    राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी और पर्वतारोही।

पेशा  :    केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में हेड कांस्टेबल (2012 से कार्यरत)

प्रसिद्धि  :    माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय दिव्यांग।

पति  :   गौरव सिंह  ( विवाह 21 जून 2018)

किताब  :    बोर्न अगेन इन द माउंटेन।

 

प्रारंभिक जीवन ।

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1988 को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुआ था। उनका परिवार कायस्थ परिवार से संबंध रखता है। इनके पिता सेना में इंजीनियर थे जबकि उनकी माँ भारत के हेल्थ डिपार्टमेंट में सुपरवाइजर थी। अरुणिमा जब 3 साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी।

 

शिक्षा ।

अरुणिमा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश से ही पूरा किया। उत्तर प्रदेश से् अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अरुणिमा सिन्हा ने ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कॉलेज’ में दाखिला लिया। इसमें उन्होंने उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का कोर्स भी किया। अरुणिमा को पर्वतारोहण करना और वॉलीबॉल खेलना बहुत पसंद है। वह पर्वतारोहण करने के साथ-साथ वॉलीबॉल भी खेला करती हैं।

 

अरुणिमा सिन्हा के जीवन में घटी दुर्घटना

बात 12 अप्रैल 2011 की रात की है, अरुणिमा सिन्हा ने सीआईएसएफ की परीक्षा के लिए आवेदन किया था इसके लिए इसके लिए वह इस परीक्षा में शामिल होने के लिए लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। उसी रात अरुणिमा सिन्हा पद्मावत एक्सप्रेस में यात्रा कर रही थी, तभी यात्रा के दौरान कुछ बदमाश उनके बोगी (कोच) में घुस गए और उनसे सोने की चैन और उनके बैग छीनने की कोशिश करने लगे। 

इस छीना झपटी के दौरान उन बदमाशों ने अरुणिमा सिन्हा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया और वे दूसरी रेलवे पटरी (ट्रेक) पर जा गिरी। जिस रेलवे ट्रैक पर वह गिरी थी, उसी समय उस पटरी पर एक ट्रेन तेजी से उनकी तरफ बढ़ रही थी। इससे पहले कि वह अपने आपको उस रेलवे ट्रैक से हटा पाती, तबतक वह ट्रेन उनके पैरों को कुचलते हुए आगे निकल चुकी थी।

वे अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उन्हें उसके बाद कुछ भी याद नहीं, लेकिन इस दौरान उस पूरी रात उनके ऊपर से लगभग 49 ट्रेनें गुजरी थी और जब वह उन लम्हों को याद करती हैं तो उन्हें आज भी वही दर्द महसूस होता है।

अगली सुबह जब गांव वालों ने उन्हें देखा तो कुछ गांव वालों की मदद से उन्हें बरेली के अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके शरीर से बहुत सारा खुन (ब्लड) बह चुका था, तो जब वहां के डॉक्टरों ने उनकी हालत देखी तो कहा कि इनका पैर काटना पड़ेगा ताकि ये जीवित रह सके। लेकिन हमारे पास न तो ब्लड है और ना ही ऑपरेशन के दौरान दिए जाने वाली एनिस्थिसिया (Anaesthesia) का इंजेक्शन। 

अरुणिमा को ज्यादा होश तो नहीं था, लेकिन वह लोगों की बातों को सुन सकती थी, जब उन्होंने यह बात सुनी तो उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि, ‘डॉक्टर साहब, ‘जब मैं ऐसी हालत में पूरी रात ट्रैक पर पड़ी रहकर दर्द को सह सकती हूं, तो पैर काटने के दौरान होने वाले दर्द को भी सहन कर लूंगी।’ 

अरुणिमा की इन बातों को सुनकर वहां के दो डॉक्टरों ने अपना एक-एक यूनिट ब्लड डोनेट किया और बिना 

एनिस्थिसिया (Anaesthesia) के ही उनके एक पैर काट को दिया काटा गया। 

जब खबर मीडिया में आई और मीडिया के द्वारा वहां कि सरकार को यह पता चला कि दुर्घटना की शिकार महिला एक राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं, तो उन्हें बेहतर इलाज के लिए बरेली से लखनऊ के हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया, और बाद में 18 अप्रैल 2011 को उनको एम्स (AIIMS- All India Institute of Medical Science) में भर्ती करवाया गया। जहां लगभग 4 महीने तक उनका इलाज चला और पैर कटने की वजह से उन्हें कृत्रिम पैर लगाया गया और दूसरे पैर में रॉड डाला गया।

अरुणिमा कहती है कि, “इस दौरान मैने महसूस किया कि कुछ लोगों का नजरिया मेरे लिए बदल चुका है। सभी लोग मुझे आपाहिज समझ कर सहानूभूति (sympathy) की नजर से देख रहे थे, और यह बात मुझे बर्दाश्त नहीं थी, और उसी वक्त मैंने यह तय कर लिया कि मुझे अब ऐसा कुछ करना है, जिससे कि लोगों के आंखों में मेरे लिए सहानुभूति (sympathy) की जगह रिस्पेक्ट देख सके; और मैने निश्चय किया कि अब मैं वह करूंगी जो लोगों के पास दोनों पैरों के होने पर भी वह नहीं कर पाते। और तब मैने यह तय किया कि दुनिया की सबसे बड़ी चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करूँगी।”

 

यह भी पढ़ें:

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 अरुणिमा सिन्हा के संघर्ष की कहानी ।

अरुणिमा बताती है की, “हॉस्पिटल से निकलने के बाद, मैं अपने घर जाने के बजाय बछेंद्री पाल, जिन्होंने 1984 में एवरेस्ट फतह किया था और वह एवरेस्ट सम्मिट करने वाली पहली भारतीय महिला थी, उनके पास गई। उनके पास जाने के बाद, जब मैं उनसे मिली तो उन्होंने मुझसे कहा कि- ‘अरुणिमा तूने ऐसी हालत में एवरेस्ट जैसी दुर्गम पहाड़ी के बारे में सोचा तो, तूने अपने अंदर तो एवरेस्ट फतह कर ही लिया है, अब तो यह सिर्फ लोगों के लिए होगा।”

वे आगे कहती हैं कि, “हॉस्पिटल से निकल लेते वक्त जब लोग इस हालत में यह सोचते हैं, कि वे अपना जीवन यापन कैसे करेंगे। मेरे दिमाग में बस दो ही बातें चल रही थी, एक तो यह कि मुझे इन सब को जवाब देना है; और दूसरी यह कि मुझे कैसे एवरेस्ट सम्मिट करना है। मेरे घर वालों के बाद, बछेंद्री पाल मैम, परिवार के बाहर की पहली ऐसी इंसान थी, जिन्होंने मुझे कहा कि, “अरुणिमा तुम कर सकती हो।” मेरे लिए वही बड़ी चीज थी।

असली परेशानी तब शुरू हुई, जब उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई। रोडहेड से बेस कैंप तक पहुंचने में जहां लोगों को 2 मिनट लगते थे, वहीं अरुणिमा को तीन-तीन घंटे लग जाया करते थे। क्योंकि उनके एक पैर में रॉड लगी थी और उस पैर की हड्डियां भी ठीक से नहीं जुड़ी थी, और उनका दूसरा पैर आर्टिफिशियल था और जब उस पर प्रेशर लगता था तो जख्म ताजा होने के कारण वहां से खून बहने लगता था। जब वे एक चढ़ाई के लिए जाते थे तो हर कोई उनसे कहता था कि, अरुणिमा तुम धीरे-धीरे आओ। और यह बात उन्हें बहुत चुभती थी।

वह सोचती थीं कि, उन्होंने एवरेस्ट का प्लान किया है और वह इन के बराबर भी नहीं चल पा रही है। उन्होंने खुद से संकल्प लिया कि कोई बात नहीं एक दिन ऐसा आएगा कि मैं उनसे पहले जाऊंगी। उसके ठीक 8 महीने बाद, उनका पूरा ग्रुप अपना-अपना वजन (सामान) उठाकर बेस कैंप से तो साथ निकलते, लेकिन उस चढ़ाई पर सबसे पहले अरुणिमा पहुंचती।

 

इन्हें भी पढ़ें :

अरुणिमा सिन्हा के संघर्ष की कहानी (उन्हीं के शब्दों में) पार्ट 2 ।

 

अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जब अरुणिमा माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए पहुंची और जब शेरपा को यह बात पता चली कि, उनका एक पैर नकली (Prosthetic/Artificial) है; और दूसरे पैर में रॉड लगी है, तो शेरपा ने उन्हें ऊपर ले जाने से यह कहकर मना कर दिया कि, हम इसे नहीं ले जा सकते, क्योंकि इसकी वजह से तो मेरी भी जान जा सकती है। लेकिन सब लोगों के कहने पर शेरपा अरुणिमा को ले जाने के लिए तैयार हो गया।

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान उन्होंने कई बार मौत को नजदीक से देखा। लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत से माउंट एवरेस्ट को फतह किया। “माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की कहानी अरुणिमा सिन्हा के शब्दों में हम पढ़ेंगे हमारे अगले अंक अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पार्ट- 2 में।”

माउंट एवरेस्ट अलावा उन्होंने भारत के लगभग सभी महाद्वीप के बड़ी-बड़ी चोटियों की चढ़ाई कर चुकी है।

 

 अरुणिमा सिन्हा द्वारा किए गए अन्य चोटियों की  चढ़ाई ।

  1. नेपाल का माउंट एवरेस्ट पर्वत (ऊंचाई 8849 मीटर)
  2. अर्जेंटीना का आकोंकागुआ पर्वत (ऊंचाई 6961 मीटर)
  3. यूरोप का एलब्रुस पर्वत (ऊंचाई 5631 मीटर)
  4. अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत (ऊंचाई 5895 मीटर)
  5. ऑस्ट्रेलिया का कोसयूस्को पर्वत 
  6. इंडोनेशिया का कारस्टेंस पिरामिड 

अरुणिमा सिन्हा गरीब और दिव्यांगों के सहायता के लिए ‘शहीद चंद्रशेखर आजाद विकलांग खेल अकादमी’ के नाम से एक संस्था भी चलाती हैं।

 

अरुणिमा सिन्हा को मिले पुरस्कार एवं सम्मान ।

  • 2015  :    भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित।
  • 2016  :    तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड से सम्मानित।
  • 2016  :    अंबेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अंबेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से सम्मानित किया गया।
  • 2016  :    भारत भारती संस्था द्वारा सुल्तानपुर रत्न अवार्ड से सम्मानित।
  • 2018  :    प्रथम महिला पुरस्कार से सम्मानित।

इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा की जीवनी ‘बोर्न अगेन इन द माउंटेन’ का लोकार्पण भी किया।

 

इन्हें भी पढ़ें :

अरुणिमा सिन्हा के संघर्ष की कहानी (उन्हीं के शब्दों में) पार्ट 2 ।

रतन टाटा की जीवनी।

अमिताभ बच्चन की जीवनी।

शाहरुख खान की जीवनी।

 

आभार ।

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