पेले ! इतिहास का ऐसा फुटबॉल खिलाड़ी जिन्होंने पूरे दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ दी। पिता अस्पताल में सफाई कर्मी थे और मां नौकरानी। बेटे ने बनाया ब्राजील को, फुटबॉल वर्ल्ड कप विश्व चैंपियन।

पेले ! इतिहास का ऐसा फुटबॉल खिलाड़ी जिन्होंने पूरे दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ दी। पिता अस्पताल में सफाई कर्मी थे और मां नौकरानी। बेटे ने बनाया ब्राजील को, फुटबॉल वर्ल्ड कप विश्व चैंपियन।

पूर्व महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले की जीवनी (Pele biography in hindi)

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| पूर्व महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले कि सफलता की कहानी (Success Story of Pele)

 

पेले | Pele

ब्राजील के महान फुटबॉल खिलाड़ी


Pele biography in hindi : दोस्तों! भारत में भले ही क्रिकेट को ज्यादा तरजीह दी जाती हो, लेकिन फुटबॉल के प्रति भारत में भी लोगों की दीवानगी बढ़ती जा रही है। और जब बात फुटबॉल की हो तो एक नाम हमेशा लिया जाता है और वह है- पेले। महान पुर्व फुटबॉल खिलाड़ी पेले ने यह साबित कर दिखाया कि, ” अगर सच्ची लगन मेहनत के साथ कोई काम किया जाए, तो आप हर वो मुकाम हासिल कर सकते हैं, जो आप अपने लिए चाहते हैं। ” और कुछ ऐसा ही कर दिखाया था, पेले ने वर्ष 1958 के फुटबॉल विश्व कप में।

वर्ष 1958 के फुटबॉल वर्ल्ड कप में पेले ने ना केवल ब्राजील को फुटबॉल वर्ल्ड कप जिताया, बल्कि इतिहास में अपना नाम भी दर्ज करवा लिया। तो आइए चलते हैं, पेले के संघर्ष भरे जीवन से लेकर सफलता तक के सफर पर…

Success Story of Pele

Success Story of Pele

ब्राजील में, वह गरीबों की तंग बस्ती थी, जहां लड़के मोजों और कपड़ों से बॉल बनाकर फुटबॉल खेला करते थे। वहीं जन्म हुआ, एक ऐसे लड़के का जिसने आगे चलकर इतिहास रच दिया। उस गरीबों की तंग बस्ती में लड़के अपनी फुटबॉल खेलने की जगह खोज ही लेते थे। बच्चे जब वहां फुटबॉल खेला करते थे तो, गलियों के बीच घरों के शीशे और बाहर रखे सामान अक्सर फुटबॉल के लगने से टूट-फुट जाते थे। इसलिए बच्चे भी कमाल कोशिश करते थे, कि गेंद को ज्यादा जोर से ना मारा जाए। बच्चों में प्रतिभा ऐसी थी कि, वह चाहते तो गेंद को पैरों, घुटनों, छाती और सिर पर ही घुमाते रखते थे और नीचे जमीन पर गिरने नहीं देते थे। लोग उन बच्चों को गलियों में फुटबॉल खेलने पर अक्सर डांटते थे, कभी-कभी तो पीट भी देते थे, लेकिन रुक रुक कर वही लोग कभी उन्हीं बच्चों को प्यार से फुटबॉल खेलते हुए देखते भी थे, कि क्या पता इन्हीं बच्चों में से कल कोई अपने देश ब्राजील का नाम रोशन कर दे।

उन्हीं बच्चों में से एक था, वह दुबला पतला लड़का। 11 वर्ष का वह दुबला पतला लड़का दिखने में कमजोर लेकिन बेहद फुर्तीला और खाली पैर ऐसे दौड़ता था, मानो सबसे आगे निकल जाना हो, चाहे ब्रेड और कुछ केले ही पेट में गए हो। वह दुबला पतला लड़का कपड़ों के बोरों से बने वस्त्र पहनकर शान से कभी भी फुटबॉल खेलने निकल जाता था। वह जितना फुर्तीला था उतना बेहतरीन फुटबॉल भी खेलता था। लेकिन, उसकी मां नहीं चाहती थी कि, उसका बेटा फुटबॉल खेले। क्योंकि उस लड़के के पिता पहले ही अपने फुटबॉल के शौक में एक घुटने खराब कर चुके थे।

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बेहद गरीब परिवार में जन्मे उस लड़के के पिता अस्पताल में एक मामूली सफाई कर्मी थे, और उनकी मां एक नौकरानी का काम करती थी। लेकिन उस लड़के के सपने में बहुत बड़े थे और फुटबॉल की प्रति दीवानगी भी उतनी ही ज्यादा थी। उस लड़के को लगता था कि, “पिता ने जिस फुटबॉल को मजबूर होकर छोड़ दिया, उस फुटबॉल को आगे ले जाना उसका कर्तव्य है।” जब उसके पिता उसे गलियों में फुटबॉल को अपने शरीर पर संभालते देखते थे तो, उन्हें भी यही लगता था।

Pele 03 -

बात द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की है। वर्ष 1950 में पहली बार ब्राजील में ही फुटबॉल विश्वकप का आयोजन किया जा रहा था। पूरा देश फुटबॉल के रंग में रंगा था। उस फुटबॉल विश्व कप में 13 टीमों ने हिस्सा लिया था। जिसमें ब्राजील ने शानदार प्रदर्शन किया और फाइनल में पहुंचने के लिए ब्राजील ने स्वीडन और स्पेन को क्रमशः 7-1 और 6-1 से हराया था। अब ब्राजील को फुटबॉल विश्व कप कि ट्रॉफी के लिए सिर्फ ड्रा की जरूरत थी। फाइनल के दिन, 16 जुलाई 1950 को उस लड़के के पिता, डोनडिन्हो ने अपने दोस्तों के साथ रेडियो पर कमेंट्री सुनते हुए पार्टी करने का फैसला किया था। इसलिए उन्होंने अपने लगभग 15 दोस्तों को  सपरिवार आमंत्रित भी कर दिया था। फुटबॉल विश्वकप का फाइनल ब्राज़ील और उरुग्वे के बीच था और सभी को ऐसा लग रहा था कि, ब्राजील आसानी से उरूग्वे को हरा देगा। लड़कों के लिए कमरों में जगह नहीं थी, इसलिए वे बीच-बीच में आकर कमेंट्री सुनते और फिर बाहर जाकर फुटबॉल खेलने लगते।

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पिता के आंसूओ से एक फुटबॉल चैंपियन बनने की कहानी |

Pele biography in hindi : ब्राजील ने उरुग्वे के खिलाफ पहला गोल दागकर शुरूआत कर दी थी। ब्राजील के पहले गोल के साथ ही शहर में पटाखे फूटने लगे थे। लेकिन मैच खत्म होते-होते, अंततः पूरे ब्राज़ील मे दुख का माहौल छा गया था। उस लड़के के पिता जो अपने दोस्तों के साथ रेडियो पर फुटबॉल मैच सुन रहे थे, उस कमरे में भी पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था। वह लड़का दौड़कर उस कमरे में अपने पिता के पास गया। जब वह उस कमरे में पहुंचा तो उसने देखा कि, उसके पिता और उनके दोस्त, सभी रो रहे थे।

लड़के ने पूछा- “क्या हुआ..?”

रूंधे हुए गले से उसे जवाब मिला कि- “ब्राजील हार गया।”

तरह-तरह के अभाव के बावजूद ऐसी उदासी, ऐसी निराशा से उस लड़के का सामना कभी नहीं हुआ था। तालियों की गड़गड़ाहट, पटाखों और रेडियो की तेज आवाज मानो हार के सन्नाटे में कहीं खो हो गई थी। उस लड़के ने अपने पिता को पहली बार रोते हुए देखा था। उसे समझ मे नहीं आ रहा था कि वह आखिर क्या करें, लेकिन उसने अपने पिता से एक बात कह दिया था कि, – “एक दिन, मैं आपको विश्वकप जीताऊंगा।”

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हार और गम का वह लम्हा कहीं उस लड़के के अंदर मन में जमकर बैठ चुका था। उस दिन ब्राजील में सदमे में ना जाने कितने लोगों की जानें गई थी। उस दिन वह लड़का भी यीशु की एक तस्वीर के सामने खड़े होकर बहुत रोया था, और कह रहा था – ” हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ, हमारे पास बेहतर टीम थी, हम कैसे हार गए। अगर मैं वहां होता तो ब्राजील को कप हारने नहीं देता। अगर मैं वहां होता तो ब्राजील जीत जाता। या अगर मेरे पिता खेल रहे होते तो ब्राजील को वह गोल मिल जाता जिसकी हमें जरूरत थी…।”

कहते हैं ना कि, ” किसी चीज को अगर दिल से चाहो तो उसे पाने से तुम्हें कोई रोक नहीं सकता। हां, हो सकता है कि, उस बड़ी चीज तक तुम ना पहुंच पाओ। पर रास्ते में कामयाबियों के कई पड़ाव आएंगे। और तुम विजयी करार दिए जाओगे। “ अब उस लड़के ने ठान लिया था कि, चाहे जो हो जाए अब वह फुटबॉल प्लेयर ही बनेगा और ब्राजील को फुटबॉल विश्व कप विजेता बनाएगा। उसके पिता के उन आंसुओं ने उसके पूरे जीवन को ही बदल दिया था।

Pele 04 -

खैर, समय बितता गया और महज 6 साल लगे, वह लड़का फुटबॉल से ऐसे रम गया कि ब्राजील की राष्ट्रीय टीम ने उसे बुला लिया और वह ब्राजील की राष्ट्रीय टीम के लिए फुटबॉल खेलने लगा। वर्ष 1958 में फुटबॉल वर्ल्ड कप का भी समय आ गया था। उसके पिता ने ही सबसे पहले रेडियो पर बेटे के चयन का समाचार सुना, लेकिन उन्हें यकीन नही हुआ। उन्होंने अपने बेटे को बताया कि, –  “रेडियो में न्युज में किसी टेले या शायद पेले नाम ही मैंने सुना है।”

जी हां, आपने सही सुना वह लड़का कोई और नहीं महान फुटबॉलर – पेले थे। रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचार में उनके पिता ने अपने बेटे का नाम, “पेले” बिल्कुल सही सुना था। और पेले फुटबॉल विश्व कप में ब्राज़ील की तरफ से खेलने के लिए टीम में चयनित हो चुके थे। फिर क्या था, 17 वर्षीय वह गरीब लड़का पहली बार यूरोप जाने के लिए 24 मई 1958 को विमान की सीढ़ियां चढ़ रहा था। इस सफर के दौरान, बीच रास्ते तक पेले को यह समझ मे आ चुका था कि, फुटबॉल ब्राजील की टीम और सम्मान क्या होता है।

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वर्ष 1950 के फुटबॉल वर्ल्ड कप में, ब्राजील के हारने के बाद पिता की आंखों से आंसू पोछने का मौका पेले गवाना नहीं चाहते थे, और मन ही मन में उसने ठान लिया था कि देश की जीत के लिए खेलना है, ताकि पिता के आंसू इतिहास बन जाएं।

कहते हैं ना, सच्चे मन से अगर तुम कुछ चाहो, तो वह मिलकर ही रहता है। हुआ भी वही, अपने शानदार खेल से ब्राजील ने स्वीडन को 5-2 से हराकर विश्व कप की ट्रॉफी अपने नाम कर लिया था। एक गरीब घर और बेहद ही अभावों में पले-बढ़े, पेले ने विश्व कप के फाइनल में ब्राजील के लिए बेहतरीन दो गोल किए थे। इसके बाद, पेले ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 17 वर्षीय पेले को उस दिन पूरी दुनिया जान गई थी, और चारों तरफ उनके ही चर्चे थे।

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उस दिन पेले ने अपनी मेहनत और लगन से वह कारनामा कर दिखाया था, जिसके सपने उनके पिता कभी देखा करते थे। पेले ने अपने पिता के उस सपने को पूरा कर दिया था, जो पहले कभी वे बनना चाहते थे। ब्राज़ील को फुटबॉल वर्ल्ड कप चैंपियन बनाने के बाद, पेले वापस ब्राजील लौटते हीं, अभ्यास में जुट गए, क्योंकि वह दुनिया के महान फुटबॉलर बनना चाहते थे।

इधर, नौकरानी रही उनकी मां, जो पेले को फुटबॉल खेलने से मना करती थी, और उनके पिता जिन्होंने फुटबॉल के चलते अपने एक घुटने गवाँ दिए थे, अब उनकी जिंदगी भी बदल चुकी थी और उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों से सम्मान के लिए बुलाया जाने लगा था। आज भी जब फुटबॉल की बात की जाती है तो, पेले का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। आज भी पेले कई बड़े-बड़े और मशहूर फुटबॉल खिलाड़ियों के प्रेरणा स्रोत है।

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आभार


उम्मीद है, आपको हमारा आज का यह आर्टिकल पसंद आया होगा। ऐसे ही महान लोगों की जीवनी और सफलता की कहानियां को पढ़ने के लिए जुड़े रहे biograhybooks.in के साथ। धन्यवाद…!

 

 

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