अल्बर्ट आइंस्टीन की बायोग्राफी | Albert Einstein Ki Biography in Hindi

अल्बर्ट आइंस्टीन की बायोग्राफी | Albert Einstein Ki Biography in Hindi

“अपना जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं- पहला, यह मान लेना कि कोई चमत्कार नहीं होता है, और दूसरा यह कि हर वस्तु एक चमत्कार है।”

                                     – अल्बर्ट आइंस्टीन ।

अल्बर्ट आइंस्टीन एक विश्व प्रसिद्ध भौतिक विद् थे, जिन्होंने भौतिक के क्षेत्र में कई सिद्धांत भी दिए हैं, जिसमें ‘सापेक्षता का सिद्धांत’ और ‘द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण’ (E = mc2 ), के लिए जाने जाते हैं। उन्हें उनके महान सैद्धांतिक भौतिकी कार्य खासकर ‘

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प्रकाश विद्युत उत्सर्जन‘ की खोज के लिए सन् 1921 में ‘नोबेल पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने भोतिकी के क्षेत्र में अपने कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं, जिसमें उनके 1905 मे ‘विशेष सापेक्षिकता’ और 1916 मे ‘सामान्य आपेक्षिकता के सिद्धांत’ सहित कई सिद्धांत शामिल हैं। उनके अन्य सिद्धांतों में सापेक्ष ब्रह्मांड, केशिकीय गति, विकिरण के सिद्धांत, क्रांतिक उपच्छाया, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, अणुओं के ब्राउनियन गति, कम विकिरण घनत्व वाले प्रकाश के उष्मीय गुण, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत, भौतिकी का ज्यामितिकरण, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याएं, और अणुओं की उत्परिवर्तन संभाव्यता, आदि शामिल है। 

अल्बर्ट आइंस्टीन के बौद्धिक उपलब्धियों और उनकी महान प्रतिभा ने ‘आइंस्टीन’ शब्द को बुद्धिमान का पर्याय बना दिया।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने 50 से भी ज्यादा शोध पत्र और विज्ञान के क्षेत्र मे अलग-अलग किताबें भी लिखी है। 1999 में टाइम पत्रिका ने अल्बर्ट आइंस्टाइन को शताब्दी का पुरुष घोषित किया गया था। 

आइंस्टाइन ने अपने जीवन काल में 300 से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्रों का प्रकाशन किया था। 5 दिसंबर 2014 को विश्वविद्यालयो और अभिलेखागारो द्वारा आइंस्टीन के 30,000 से ज्यादा अद्भुत दस्तावेजो एवं पत्रो के प्रदर्शन की घोषणा की गई थी। एक सर्वेक्षण के अनुसार वे सर्वकालिक महानतम वैज्ञानिक भी माने गए थे। 

अल्बर्ट आइंस्टीन की बायोग्राफी | Albert Einstein Ki Biography in Hindi

अल्बर्ट आइंस्टीन की बायोग्राफी | Albert Einstein Ki Biography in Hindi

अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय : एक नजर में।

नाम  :   अल्बर्ट आइंस्टीन 

जन्म  :   14 मार्च 1879 

जन्म स्थान  :   उल्म, वुर्ट्टनबर्ग (जर्मन साम्राज्य) 

माता  :   पॉलीन आइंस्टीन

पिता  :   हरमन आइंस्टीन

आवास  :   जर्मनी, इटली, स्वीटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य, बेल्जियम, संयुक्त राज्य अमेरिका

जातीयता  :   यहूदी

नागरिकता  :   वुर्ट्टनबर्ग, जर्मनी (1879-1896); राज्यविहीन (1896-1901); स्वीट्जरलैंड (1901-1955); आस्ट्रिया (1911-1912); जर्मनी (1914-1933); संयुक्त राज्य अमेरिका (1940-1955)

शिक्षा  :   ईटीएच ज़्यूरिख़ (ज्यूरिख विश्वविद्यालय) प्रसिद्धि  :   सापेक्षता और विशिष्ट आपेक्षिता, प्रकाश विद्युत-प्रभाव, द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्य, ब्राउनियन गति, आदि।

पत्नी  :   मिलेवा मेरिक (1903-1919)

एलसा आइंस्टीनन (1919-1936) 

संतान  :   हैंश अल्बर्ट आइंस्टीन, लैजरल मेरिक, एडवर्ड आइंस्टीन

पेशा  :  वैज्ञानिक

क्षेत्र  :  भोतिकी के क्षेत्र में।

पुरस्कार  :   भौतिकी का नोबेल पुरस्कार (1921);  मेट्यूक्सी पदक (1921);  टाइम सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति (1999), मरणोपरांत।

मृत्यु  :   18 अप्रैल 1955 (76 वर्ष की उम्र में); प्रिंस्टन, न्यू जर्सी (संयुक्त राज्य अमेरिका)

प्रारंभिक जीवन । 

अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में वर्ट्टमबर्ग (वुटेमबर्ग) के एक सामान्य से यहूदी परिवार में हुआ। उनके पिता हरमन आइंस्टीन पेशे से एक इंजीनियर और सेल्समैन थे। उनकी मां पॉलिन आइंस्टीन एक ग्रहणी थी। आइंस्टीन को बचपन में बोलने में कठिनाई होती थी, और वे पढाई में ज्यादा अच्छे भी नहीं थे। उनकी मातृभाषा जर्मन थी और बाद में उन्होंने इतालवी और अंग्रेजी भाषा भी सीखा था।

  • सन् 1880 में उनका पूरा परिवार म्यूनिख शहर चला आया और वहां उनके पिता ओर चाचा ने साथ मिलकर ‘इलेक्ट्रोटेक्निक्स  फैब्रिक जे. आइंस्टीन एंड सी (Elektrotechnische fabric J.  Einstein & Chi)’ नाम की एक कंपनी खोली। यह कम्पनी बिजली के उपकरण बनाने का काम करती थी, और इस कम्पनी ने म्यूनिख के एक मेले में पहली बार रोशनी कि सुविधा भी उपलब्ध कराया था। उनका परिवार था तो यहूदी परंतु वे यहुदी धार्मिक परंपराओं को नहीं मानते थे और इस वजह से आइंस्टीन का दाखिला एक कैथोलिक विद्यालय में करा दिया गया। 

 

  • आइंस्टीन को सारंगी बजाना पसंद नहीं था, परंतु अपनी मां के कहने पर उन्होंने सारंगी बजाना भी सीखा था। लेकिन उन्हें यह पसंद नहीं था तो बाद में उन्होंने इसे छोड़ भी दिया। परंतु बाद में उन्हें मोजार्ट के सारंगी संगीत में बहुत आनंद आने लगा।

 

  • इसके संबंध में एक बार उन्होंने कहा था कि “एक मेज, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलिन (सारंगी); भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए।”

 

  • सन् 1894 में उनके पिता की कंपनी को म्यूनिख शहर में विद्युत प्रकाश व्यवस्था के आपूर्ति के लिए कोई भी अनुबंध नहीं मिल सका था; जिसके कारण उन्हें बहुत ही नुकसान का सामना करना पड़ा। कम्पनी मे हुए अपने इस नुकसान के कारण उन्हें अपनी कंपनी को भी बेचना पड़ा। कंपनी बेचने के बाद व्यापार की तलाश में आइंस्टीन का पूरा परिवार इटली चला गया; जहां वे सबसे पहले मिलान और फिर कुछ समय बाद पाविया शहर में बस गए। परंतु आइंस्टीन म्यूनिख में ही अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए रुके रहे। 

 

  • सन् 1894 के दिसंबर के अंत में वे अपने परिवार से मिलने के लिए इटली में पाविया आए। उस समय के दौरान उन्होंने “चुंबकीय क्षेत्र में ईथर की अवस्था की जांच” शीर्षक पर एक निबंध लिखा था। 

 

  • 1895 में 16 वर्ष की उम्र में आइंस्टीन ने ज्यूरिख में ‘स्विस फेडरल पॉलिटेक्निक स्कूल’ (बाद में ईडेनजास्से टेक्निशे, ईटीएच) के लिए प्रवेश परीक्षा दी। परंतु वे परीक्षा के सामान्य भाग में आवश्यक मानक तक पहुंचने में असफल रहे, लेकिन भोतिकी और गणित में असाधारण ग्रेड प्राप्त किया। उसके बाद पॉलिटेक्निक स्कूल में प्रिंसिपल की सलाह पर उन्होंने 1895 और 1896 में स्विट्जरलैंड के आरौ में आर्गोवियन केंटोनल स्कूल (व्यायामशाला) में अपनी माध्यमिक स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए भाग लिया। वहां वे प्रोफेसर जोस्ट विंटेलर के परिवार के साथ ही रहते थे और इसी दौरान आइंस्टीन को प्रोफेसर की बेटी मैरी से प्रेम हो गया।

 

  • आइंस्टीन के साथ ही उसी साल पॉलिटेक्निक स्कूल में 20 वर्षीय सर्बिया की एक लड़की, जिसका नाम मिलेवा मैरिक है, ने दाखिला लिया। वह शिक्षण डिप्लोमा पाठ्यक्रम के गणित और भौतिकी खंड में छह छात्रों में से एक मात्र महिला थी। आने वाले कुछ वर्षों में आइंस्टीन और मिलेवा मेरिक की दोस्ती, रोमांस मे बदल चुकी थी। 

 

सन् 1900 मे आइंस्टीन ने गणित (Maths) और भोतिकी (Physics) कि परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें संघीय शिक्षण डिप्लोमा से सम्मानित भी किया गया।

 

वैवाहिक जीवन ।

आइंस्टीन ने अपने साथ पढ़ने वाली अपनी ही साथी मिलेवा मेरिक से प्रेम होने के बाद सन् 1930 के  जनवरी माह में शादी कर ली। अपनी शादी के एक साल बाद, मई 1904 में मिलेवा ने एक बेटे हंस अल्बर्ट आइंस्टीन को जन्म दिया। हंस अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म स्विट्जरलैंड के बर्न में हुआ था। इसके बाद सन् उनके सबसे छोटे बेटे एडवर्ड आइंस्टीन का जन्म सन् 1910 मे ज्यूरिख में हुआ था। 

 

निजी जीवन ।

इससे पहले आइंस्टीन और मिलेवा के बीच हुए  शुरुआती पत्राचार को 1987 में प्रकाशित किया गया;  जिसमें यह भी मालूम चला कि इस दंपति की शादी से पहले भी एक बेटी हुई, जिनका नाम लिसेर्ल हैं, और इनका जन्म 1902 में नोवीं सेंड में हुआ था, जहां मिलेवा अपने माता-पिता के साथ रहती थी।

मिलेवा अपनी बेटी के बिना ही वापस स्विट्जरलैंड लौट आई।

 

सितंबर 1930 में आइंस्टीन की एक पत्र लेखन उनकी बेटी के संबंध में यह बताती है कि, लिसेर्ल को या तो गोद लेने के लिए छोड़ दिया गया था, या फिर बचपन में स्कार्लेट ज्वर से उनकी मृत्यु हो गई थी।

 

दूसरा प्रेम और तलाक ।

सन् 1914 के अप्रैल माह में आइंस्टीन और उनका परिवार बर्लिन चला आया। अल्बर्ट आइंस्टीन का आकर्षण उसकी चचेरी बहन एलसा के साथ था। यह जानने के बाद मिलेवा मेरिक अपने बेटों के साथ ज्युरिख वापस लौट आई। 

 

  • कुछ सालों बाद ही मिलेवा मेरिक ने फरवरी 1919 मे आइंस्टीन को तलाक दे दिया। पांच सालो तक अलग रहने के बाद, 20 वर्ष की आयु में एडवर्ड बिमार पड़ गए और उनका ईलाज सिजोफ्रेनिया के द्वारा किया गया। उसकी मां ने ही एडवर्ड की देखभाल की।

 

  • वर्ष 2015 में मिले उनके पत्रों के अनुसार यह पता चला कि, आइंस्टीन ने अपने सबसे पहले प्रेमी मैरी विंटेलर को अपनी शादी और उसके लिए अपनी मजबूत भावनाओं के बारे में एक पत्र में लिखा था कि “मुझे लगता है कि आप हर मिनट मेरे दिल से प्यार करते हैं, और मैं इतना दुखी हूं, जितना कि एक आदमी ही हो सकता है।” 

 

  • उन्होंने 1910 में यह पत्र तब लिखा था जब उनकी पत्नी अपने दूसरे बच्चे के साथ गर्भवती थी। उन्होंने मैरी के प्रति अपने प्यार को  ‘एक गुमराह प्यार’ और ‘एक याद जीवन कि’ बताया।

 

  • सन् 1912 में अपनी चचेरी बहन एलसा के साथ रिश्तो में आने के पांच साल बाद, आइंस्टीन ने सन् 1919 में उनसे शादी कर ली। 

 

  • सन् 1933 में वे संयुक्त राज्य अमेरिका आ गए। सन् 1935 में एलसा को हृदय और गुर्दे की समस्या शुरू हुई और इसके एक साल बाद ही दिसंबर, 1936 में उनकी मृत्यु हो गई। 

 

  • सन् 1927 मे उन्हें बेट्टी न्यूमैन नाम की एक सचिव से प्यार हो गया, जो उनके एक करीबी दोस्त हंसमुशाम की भतीजी थी। 

 

  • 2006 में यरूशलम का हिब्रू विश्वविद्यालय द्वारा जारी पत्रों में आइंस्टीन ने 6 महिलाओं जिक्र किया था जिसमें, मार्गरेट लेबाच (एक गोरी आस्ट्रियन), एस्टेला काटजेनबेलोजेन (एक फूल व्यवसाय की धनी मालकिन), टोनी मेंडल (एक धनी यहूदी विधवा) और एथेल माइनोव्स्की (एक बर्लिन सोशलिस्ट), शामिल है। ये सभी वह महिलाएं है जिनके साथ उन्होंने कभी समय बिताया था, और जिनसे उन्हें एलसा से शादी करते हुए उपहार भी मिले थे। 

 

  • अपनी दूसरी पत्नी एलसा की मृत्यु के बाद आइंस्टीन मार्गरिटा कोन्नेकोवा के साथ कुछ समय तक रिश्ते में रहे।

 

एक विवाहित रूसी महिला, जो एक रूसी जासूस भी थी और उन्होने विख्यात रूसी मूर्तिकार सर्गेई कोनेनकोव से शादी की थी, उन्होनें आइंस्टीन की कास्य कि अर्ध-प्रतिमा का निर्माण प्रिंसटन में किया।

 

धार्मिक विचार और राजनीतिक । 

अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। महात्मा गांधी के साथ उन्होंने लिखित पत्रों का आदान-प्रदान भी किया। उन्होंने महात्मा गांधी को “आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रोल मॉडल” के रूप में बताया। 

आइंस्टीन ने अपने मूल लेखन और साक्षात्कार मे एक विस्तृत श्रृंखला में अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण की बात की थी। आइंस्टीन ने कहा था कि “वह एक व्यक्तिगत ईश्वर में विश्वास नहीं करता है, जो खुद को मनुष्य के भाग्य और कार्यों से चिंतित करता है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, “हालांकि, मैं नास्तिक नहीं हूं।” यह पूछे जाने पर कि, “क्या वह एक पुनर्जन्म अथवा मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करते हैं?”

इस पर आइंस्टीन ने उत्तर देते हुए कहा की, “नहीं, एक जीवन मेरे लिए पर्याप्त है।” 

आइंस्टीन ने अपने पूरे जीवन काल में सैकड़ों किताबें और लेख प्रकाशित किए है। उन्होंने 300 से भी ज्यादा वैज्ञानिक और 150 गैर-वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित किये है। 1965 में छपे अपने एक व्याख्यान में ओप्पेन्हेइमर ने यह बताया था कि “आइंस्टीन के प्रारंभिक लेखन में कई त्रुटियां हुआ करती थी, जिसके कारण उनके प्रकाशन में लगभग 10 वर्ष की देरी हो चुकी है। 

 

आइंस्टीन की महानता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, एक आदमी जिसकी त्रुटियों को ही सही करने में एक लंबा समय लगता है, वह कितना महान व्यक्ति होगा। 

 

वह खुद के काम के साथ-साथ दूसरे वैज्ञानिकों का भी सहयोग करते थे, जिनमें बोस-आइंस्टीन के आंकड़े, आइंस्टीन-रेफ्रिजरेटर और अन्य कई सिद्धांत शामिल है।

 

अल्बर्ट आइंस्टीन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत।

अपने चार लेखों से संबंधित “अनुस मीराबिलिस पेपर्स” जिसे आइंस्टीन ने 1905 में ऑनलान डेर फिजिक नाम की एक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित किया था। इस प्रकाशण में प्रकाश-विद्युत प्रभाव (क्वांटम सिद्धांत), ब्राउनियन गति, विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत, और E=mc2  शामिल है। इन चारों लेखों को आधुनिक भौतिकी विज्ञान की नींव के लिए बहुत ही अहम योगदान माना जाता है।

 

ऊष्मागतिकी स्थिरता और सांख्यिकीय भौतिक के क्षेत्र मे । 

 

सन् 1900 में ऑनालेन डेर फिजिक को प्रस्तुत किया गया, आइंस्टीन का पहला शोध-पत्र ‘केशिका आकर्षण’ पर था। 

 

सन् 1901 में ‘केशिकत्व घटना का निष्कर्ष’ शिर्षक के साथ प्रकाशित किया गया। इसके कुछ दिनो बाद ही 1902-1903 में उष्मागतिकी पर प्रकाशित दो पत्रों में, ‘परमाणु की घटना की व्याख्या’ सांख्यिकीय के द्वारा करने का प्रयास किया। 

 

आइंस्टीन के द्वारा उल्लेखित किया गया, यही दो पत्र 1905 के ब्राउनियन गति पर शोध पत्र के लिए बहुत ही अहम साबित हुए। जिसके माध्यम से यह पता चला कि अणुओं की उपस्थिति के लिए ब्राउनियन गति को ठोस सबूत की तरह उपयोग किया जा सकता है। 

 

सापेक्षता का सिद्धांत ।

 

सापेक्षता के सिद्धांत को आइंस्टीन के द्वारा ही व्यक्त किया गया था, जो कि हरमन मिनकोवस्की के अनुसार, अंतरिक्ष से अंतरिक्ष-समय के बीच बारी-बारी से परिवर्तनहीनता के सामान्यीकरण के लिए माना जाता है। इसके अलावा अन्य दुसरे सिद्धांत जो आइंस्टीन द्वारा ही सिद्ध किये गए थे, वे भी बाद में सही साबित हुए और बाद मे ‘समानता के सिद्धांत’ और ‘क्वांटम संख्या’ के समोष्न सामान्यीकरण के सिद्धांत को भी शामिल किया गया।

 

30 जुन 1905, मे आइंस्टीन के चलित निकायों के ‘बिजली का गतिविज्ञान’ पर शोध-पत्र पूर्ण हुआ और उसी वर्ष 26 सितंबर को प्रकाशित किया गया। यह सिद्धांत बिजली और चुंबकत्व के मैक्सवेल के समीकरण और यांत्रिकी के सिद्धांत, प्रकाश की गति (करीब यांत्रिकी में बड़े बदलाव के बाद), के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। बाद में यही सिद्धांत आइंस्टीन के ‘सापेक्षता के विशेष सिद्धांत’ के रूप में जाना गया। 

 

जिसके द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि, समय-अंतरिक्ष ढांचे में गतिशील पदार्थ, धीमा और संकुचित (गति की दिशा में) नजर आता है, जब इसे पर्यवेक्षक के ढांचे में मापा जाता है। 

 

E=mc2 का सिद्धांत ।   

द्रव्यमान ऊर्जा समतुल्यता के अपने शोध पत्र में, आइंस्टीन ने विशेष सापेक्षता समीकरणों से E=mc2 का निर्माण किया। 1905 से आइंस्टीन का सापेक्षता में शोध कई वर्षों तक विवादास्पद बना रहा, हालांकि इसे कई अग्रणी भौतिक विद् जैसे कि मैक्स प्लैंक द्वारा स्वीकार भी किया गया था।

 

फोटोन और एनर्जी क्वांटम ।

आइंस्टीन द्वारा लिखें गए 1905 के पत्र में यह भी बताया गया था कि प्रकाश स्वतः ही स्थानीय कणों यानी कि क्वांटम के बने होते हैं। आइंस्टीन के प्रकाश क्वांटा परिकल्पना को मैक्स प्लैंक और नील्स बोर सहित लगभग सभी भौतिक विदो ने अस्वीकार कर दिया था। परंतु 1919 मे रॉबर्ट मिल्लिकन के प्रकाश विद्युत प्रभाव पर विस्तृत प्रयोग तथा कॉम्पटन बिखरने के माप के साथ इस परिकल्पना स्वीकार कर लिया गया।

इसमें आइंस्टीन ने यह निष्कर्ष निकाला था की, आवृत्ति (frequency) कि प्रत्येक लहर ऊर्जा के प्रत्येक फोटोन के संग्रह के साथ जुड़ा होता है (जहां, एक प्लांक स्थिरांक है)। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस परिकल्पना को कुछ प्रयोगात्मक परिणामों द्वारा समझाया जा सकता है, और बाद बाद में इसे ही विशेष रूप से ‘प्रकाश-विद्युत प्रभाव’ कहा गया।

 

 तरंग-कण द्वैतवाद का सिद्धांत 

अल्बर्ट आइंस्टीन के इस सिद्धांत के अनुसार, “पदार्थ में उपस्थित परमाणु तरंग तथा करण दोनों की ही भांति व्यवहार करते हैं।” 

अल्बर्ट आइंस्टीन का इस विषय में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।

 

अल्बर्ट आइंस्टीन और रविंद्र नाथ ठाकुर की मुलाकात ।

14 जुलाई, सन् 1930 में बर्लिन में आइंस्टीन की मुलाकात भारत के महान साहित्यकार एवं नोबेल पुरस्कार विजेता गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर (रविंद्रनाथ टैगोर) से हुई। उन दोनों के बीच हुई मुलाकात और संवाद को एक अनूठी विरासत माना जाता है।

 

व्यक्तिगत जीवन ।

अल्बर्ट आइंस्टीन स्वभाव बहुत ही भावुक था और वे जातिवाद के खिलाफ थे। वे जातिवाद को अमेरिका की सबसे ख़राब बीमारी मानते थे।

अल्बर्ट आइंस्टीन को अमेरिका में इतनी अच्छी तरह से जाना जाता था कि लोग उन्हें सड़क पर रोककर उनके दिए सिद्धांत की व्याख्या पूछने लगते थे। आखिरकार उन्होंने इस निरंतर पूछताछ से बचने का एक तरीका निकाला वह लोगों से कहते कि ‘माफ कीजिए मुझे लोग अक्सर प्रोफेसर आइंस्टीन समझते हैं, पर मैं वो नहीं हूं।’ 

 

पुरस्कार और सम्मान । 

1921  –   भौतिकी का नोबेल पुरस्कार। 

1921  –   मेट्यूकसी पदक।

1925  –   कोप्ले पदक। 

1929  –   मैक्स प्लेंक पदक। 

1999  –   टाइम सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति।

इसके अलावा भी अल्बर्ट आइंस्टीन को कई से पुरस्कारों और सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

 

अल्बर्ट आइंस्टीन के अनमोल विचार 

  • प्रत्येक व्यक्ति प्रतिभावान है, लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से आंकेंगे, तो वह अपनी पूरी जिंदगी यही सोच कर बता देगी कि वह मूर्ख है।

 

  • जिस व्यक्ति ने कोई गलती नहीं की है। इसका मतलब यह है कि, उसने कभी सीखने के लिए कुछ नया नहीं किया।

 

  • अगर आप किसी लड़की के प्यार में गिरते हैं, तो इसका यह मतलब नहीं है कि, आप दोस्त गुरुत्वाकर्षण को दें।

 

  • प्यार में गिरने वाले लोगों के लिए गुरुत्वाकर्षण बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं है।

 

  • ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं, और एक बराबर ही मुर्ख भी।

 

  • जिंदगी साइकिल चलाने के समान है बैलेंस बनाने के लिए आपको निरंतर चलते रहना होगा।

 

  • आप कभी फेल नहीं होते, जब तक कि आप प्रयास करना नहीं छोड़ देते। 

 

  • समुद्री जहाज किनारों पर खड़े रहने पर सबसे ज्यादा सुरक्षित है। लेकिन वह किनारों पर खड़ा रहने के लिए नहीं बना है।

 

  •  सफल मनुष्य बनने के प्रयास से बेहतर है, गुणी मनुष्य बनने का प्रयास।

 

  • एक सच्चा जिनियस स्वीकार करता है कि उसे कुछ पता नहीं है।

 

  • कठिनाइयों के बीच अवसर छुपे होते हैं। 

 

  • अगर मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिल्कुल नई सोच की आवश्यकता होगी।

 

  • कोई भी समस्या चेतना के उसी स्तर पर रहकर नहीं हल की जा सकती, जिस पर वह उत्पन्न हुई है।

 

  • जब मैं “श्रीमद् भगवद्गीता” पढ़ता हूं, और इस बात को प्रतिबिंबित करता हूं कि भगवान ने इस ब्रह्मांड को कैसे बनाया है?,  कि हर एक चीज इतनी शानदार लगती है।

 

  • मैं ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ को अपनी प्रेरणा के मुख्य स्रोत एवं अपनी वैज्ञानिक जांच के सिद्धांतों के मुख्य गठन के लिए पूर्ण तरह से प्रेरणा स्त्रोत मानता हूं।

 

  • बिना गहन सोच के हम अपने रोजमर्रा के जीवन से जानते हैं कि हम दूसरों के लिए अस्तित्व में है।

 

  • वक्त बहुत कम है, यदि हमें कुछ करना है तो अभी से शुरुआत कर देनी चाहिए।

 

  • कुछ लोग ही ऐसे हैं जो अपनी आंखों से देखते हैं और दिल से महसूस करते हैं।

 

  • तर्क, आपको किसी एक बिंदु ‘क’ से दूसरे बिंदु ‘ख’ तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन कल्पना आपको सर्वत्र ले जा सकती है।

 

  • मैं उन सभी का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे ‘नहीं’ कहा। क्योंकि तभी मैंने स्वयं इसे किया।

 

  • जैसे ही आप सीखना बंद कर देते हैं, वैसे ही आप मरना शुरू कर देते हैं। जैसे रुके हुए पानी में बदबू होने लगती है, उस पानी में कीड़े रहने लगते हैं। इसलिए हमेशा सीखते रहिए।

 

  • अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि, ऐसा नहीं है कि मैं बहुत ही स्मार्ट हूं, बस मैं समस्याओं के साथ ज्यादा देर तक रहता हूं।

 

  • शांति ताकत से नहीं कायम रखी जा सकती है, यह केवल समझ से प्राप्त की जा सकती है।

 

  • मेरे पास कोई स्पेशल टैलेंट नहीं है, मैं बस बहुत जिज्ञासु हूं।

 

  • दो चीजें अनंत है- ब्रह्मांड और मनुष्य की मूर्खता। मैं ब्रह्मांड के बारे में ढर्रता से नहीं कह सकता।

 

  • हम, सभी भारतवासियों का अभिवादन करते हैं, जिन्होंने हमें गिनती करना सिखाया; जिसके बिना विज्ञान की खोज संभव नहीं थी। 

 

  • कभी-कभी लोग उन चीजों के लिए सबसे अधिक मूल्य चुकाते हैं, जो मुफ्त में मिल जाती है। 

 

  • क्रोध मूर्ख की छाती में ही बसता है।

 

  • किसी भी प्रकार की कठिन समस्या व्यक्ति को स्वयं से मिलाती है।

 

  • कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। 

 

  • ज्ञान का एकमात्र स्रोत ‘अनुभव’ है। 

 

  • दृष्टिकोण की कमजोरी एक दिन आपके चरित्र की कमजोरी बन जाएगी। इसलिए मजबूत दृष्टिकोण विकसित करें।

 

  • ‘संयोग’ भगवान का दिया हुआ एक गोपनीय रास्ता है।

 

  • इंसान को यह देखना चाहिए कि, क्या है। यह नहीं कि उसके अनुसार क्या होना चाहिए।

 

  • जो लोग छोटी-छोटी बातों में सच नहीं बोलते। उन पर बड़े मामलों में भी विश्वास नहीं किया जा सकता।

 

  • एक बार जब हम अपनी सीमा स्वीकार करते हैं, तो हम उसके आगे जाते हैं।

 

  • अगर आप सुखी जीवन जीना चाहते हैं, तो उसे लक्ष्य से बांधे। ना कि लोगों से और चीजों से।

 

  • किताबी ज्ञान अर्जित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि, लगातार चिंतन करते रहने की आदत डालना।

 

  • दूसरों के लिए जीया जाने वाला जीवन ही सार्थक जीवन है।

 

  • जब आप एक अच्छी लड़की के साथ बैठे हो, तो एक घंटा भी एक सेकेंड के सामान लगता है। जब आप धधकते अंगारों पर बैठे हो, तो एक सेकंड भी एक घंटे के समान लगता है। यही सापेक्षता है।

 

  • स्कूल में जो सिखाया जाता है, उसे भूलने के बाद जो याद रहता है, उसे शिक्षा कहते हैं।

 

  • मूर्खता और बुद्धिमता में सिर्फ एक फर्क होता है कि, बुद्धिमता की एक सीमा होती है।

 

  • अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है।

 

  • धर्मरहीत विज्ञान, लंगड़ा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा।

 

  • अपना जीवन जीने के केवल दो ही तरीके हैं- पहला, यह मान लेना कि कोई चमत्कार नहीं होता है। और दूसरा यह कि हर वस्तु एक चमत्कार है।

 

  • प्रकृति को गहराई से देखें और आप हर चीज को बेहतर समझ पाएंगे।

 

  • हिंसा हमेशा बाधा को जल्दी हटा सकती है, पर यह कभी सृजनात्मक नहीं हो सकती।

 

  • हालात मनुष्य से ज्यादा मजबूत होते हैं।

 

  • कमजोर लोग बदला लेते हैं, मजबूत लोग माफ कर देते हैं, समझदार लोग अनदेखा करते हैं। 

 

  • एक मेज, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलिन; भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए।

 

  • अगर कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान पाने के लिए खर्च करता है, तो ऐसे ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता। ज्ञान पाने के लिए किया गया निवेश अच्छा फल देता है।

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