अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पार्ट-2। Arunima Sinha Ki Biography in Hindi Part-2

अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पार्ट-2। Arunima Sinha Ki Biography in Hindi Part-2

 

“लाइफ में गोल्डन चांस बार-बार नहीं आते, और यह आपके ऊपर है कि आप उसे पकड़ कर रखते हो या फिर छोड़ देते हैं।”

                                        अरुणिमा सिन्हा ।

अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पार्ट-2। Arunima Sinha Ki Biography in Hindi Part-2

अरुणिमा सिन्हा की जीवनी पार्ट-2। Arunima Sinha Ki Biography in Hindi Part-2

12 अप्रैल 2011 की रात चलती ट्रेन से कुछ गुंडों ने अरुणिमा सिन्हा को नीचे फेंक दिया था। नीचे गिरने के बाद जब उन्हें होश आया तो उन्होंने देखा कि ट्रेन से नीचे गिरने की वजह से, वह दूसरे ट्रैक पर आने वाली एक ट्रेन की चपेट में आने से उनकी एक टांग कट चुकी थी। वह सारी रात उस पटरी पर पड़ी रही और सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। फिर उन्होंने महसूस किया कि कुछ लोगों का नजरिया उनके लिए बदल चुका है। 

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सब लोग उसे अपाहिज समझकर सहानुभूति की नजर से देख रहे थे। पर यह बात उन्हें बर्दाश्त नहीं हुई, और उन्होंने उसी वक्त यह तय कर लिया कि अब मुझे कुछ ऐसा करना है जिससे कि लोगों के आंखों में सहानुभूति की जगह, उनके लिए सम्मान देख सके। और उन्होंने डिसाइड किया कि अब “मैं वह करूंगी जो लोगों के दोनों पैर होने पर भी नहीं कर पाते हैं।” 

अरुणिमा ने डिसाइड किया कि क्या था कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ेंगी। इसके लिए उन्होंने माउंटेनियरिंग की ट्रेनिंग भी स्टार्ट कर दी। जैसा कि हम जानते हैं कि,  सोचने में और करने में बहुत फर्क होता है। जब अरुणिमा सिन्हा ने अपनी ट्रेनिंग स्टार्ट की, तब उनके घाव पूरी तरह से भरे भी नहीं थे, इसलिए थोड़ी देर चलने के बाद ही इनके पैरों से खून निकलने लगता था। 

उनके पास ऑप्शन था, वह इसका बहाना बनाकर पीछे हट सकती थी, लेकिन वह पीछे हटने को तैयार नहीं थी। अपनी ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने हर तरह का दर्द सहा। अपनी ट्रेनिंग पूरी की और अब वे तैयार थी, माउंट एवरेस्ट के लिए। लेकिन चढ़ाई वाले दिन ही उनकी नकली टांग देखकर शेरपा ने उन्हें ऊपर ले जाने से मना कर दिया। परंतु इस लड़की की हिम्मत और जज्बे को देखकर शेरपा को भी मानना पड़ा। और अब शुरू होती है एवरेस्ट की चढ़ाई अरुणिमा सिन्हा के शब्दों में

 

अरुणिमा सिन्हा द्वारा माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई ।

अरुणिमा सिन्हा बताती हैं कि…

जब मैं एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए पहुंची और शेरपा को यह बात पता चली कि मेरा एक पैर नकली (prosthetic leg/artificial leg) है; और मेरे दूसरे पैर में  रॉड लगी है, तो उसने मुझे ऊपर ले जाने से मना कर दिया, और कहा कि, “हम इसे नहीं ले जा सकते, क्योंकि इसकी वजह से तो मेरी भी जान चली जाएगी।” फिर हमने, मैडम ने, हम सब ने उन्हें मनाया और वह और किसी तरह से तैयार हो गए।

हमारी चढ़ाई शुरू हो गई और, जब हम ब्लू आईस (blue ice) और ग्रीन आइस (green ice) में पहुंचे तो मेरा नकली पैर स्लिप कर जाता था। जब मैं अपने अपने left crampon से बर्फ में पैर रखने के लिए pointing करती थी तो मेरा नकली पैर मुड़ जाता था। 

शेरपा कहते थे कि, अरुणिमा नहीं हो सकता, जबरदस्ती मत करो। 

बार-बार कोशिश करने के बाद जब बर्फ वहां पर टूट-टूट कर गिरने लगता था तो वहां पर गड्ढा (hole) बन जाता था, और मैं वहां पर अपना पैर रखकर आगे बढ़ती थी। 

कैंप-3 तक तो सब ठीक था, पर जब बात कैंप- 3 के ऊपर की होती है, यानी कि साउथ कोल चढ़ाई (South Col summit) की, तो अच्छे-अच्छे mountaineers, अच्छे-अच्छे दिलेर के हौसले तब टूट जाते हैं, जब वह अपनी आंखों के सामने किसी को मरता देखता है। तब दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात आती है, कि जिस चीज के लिए हम जा रहे हैं, इसके लिए वे लोग मर चुके हैं।

अरुणिमा आगे बताते हुए कहती है कि…

रात में माउंटेनिंग ज्यादा से ज्यादा की जाती है, क्योंकि उस समय मौसम शांत होता है। जब मैं साउथ कोल, कैंप-4 (South Col Camp- 4) से रात में निकली थी तो मेरी हेडलाइट जिस तरफ भी जा रही थी उसी तरफ डेड बॉडीज (dead bodies) नजर आ रही थी, और मैं काफी डरी हुई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं करूं तो क्या करूं।

मैं जिस रोप में आगे बढ़ रही थी, तो एक बांग्लादेशी, उनका हाथ ऊपर की तरफ धीरे-धीरे हिल रहा था और वह दर्द भरे आवाज में कराह रहा था। मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितना डर लग रहा था। बार-बार यही लग रहा था कि, इसका ऑक्सीजन खत्म हो गया है और अब यह मर चुका है। और इस स्थिति में हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। 

10-15 मिनट मैं वहां खड़ी रही, और अपने टीम के 6 लोगों से कहा, कि यदी आप सब ने एवरेस्ट फतह कर लिया तब तो ठीक है, नहीं तो मैं, आप सबके लिए एवरेस्ट फतह करूंगी, और जिंदा वापस लौट कर आऊँगी। क्योंकि जैसा हम सोचते हैं हमारी बॉडी भी उसी तरीके से रिस्पांस करना शुरू कर देती है।

 

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मैं आगे बढ़ी, क्योंकि आप वहां दूसरे रास्ते से जा नहीं सकते। मैंने उस डेड बॉडी को लांघा और आगे बढ़ी।

(Hillary step) हिलेरी स्टेप के करीब जब मैं South Summit के पास पहुंची तो मेरे शेरपा ने मुझे एक जोर का झटका दिया और कहा कि, अरुणिमा वापस चलो, तुम्हारा ऑक्सीजन खत्म हो रहा है।

हिलेरी स्टेप (Hillary Step) के बाद थोड़ी दूर आगे जाने पर एवरेस्ट कि चोटी (Everest Summit) आता है। अब यदि आप अपने टारगेट से बस थोड़ी दूर पर हो, और वो टारगेट जिसे achieve करने के लिए आपने जी जान लगा दी हो, वह टारगेट जो आपका सपना है। वह चीज आपके सामने हो और अगर आपसे कोई कहे कि वापस चलो तो कैसा लगता है?

मैंने कहा, सर आप यह क्या बोल रहे हैं? मैं वापस नहीं जाऊंगी।

शेरपा ने कहा, जिंदगी रही, तो दोबारा एवरेस्ट सम्मिट करना। दोबारा हो जाएगा तुम्हारा।

 मैंने कहा – नहीं।

 

लाइफ में गोल्डन चांस बार-बार नहीं आते, और यह आपके ऊपर है कि आप उसे पकड़ कर रखते हो या फिर छोड़ देते हैं। और मैं इस गोल्डन चांस को छोड़ना नहीं चाहती थी। क्योंकि मैं जानती थी, कि इसके लिए मुझे स्पॉन्सरशिप (sponsership) बहुत मुश्किल से मिली है। और अगर इस बार मैंने यह छोड़ दिया तो फिर दोबारा शायद कभी नहीं मिलेगा। यह बात मैं अच्छे से जानती थी। 

एक बार मेरी मां और बछेंद्री पाल मैम ने मुझे बताया था कि, एक समय ऐसा होगा, जब आप अकेले पड़ जाओगे और सिर्फ आपको ही डिसीजन लेना होगा। जहां पर भी आप हैं, वहां से खड़े होकर पीछे मुड़कर देखना, और यह सोचना कि आप एक-एक कदम बढ़ा कर यहां तक पहुंची हो। तुम अपना एक कदम आगे बढ़ाना, और तुम देखना कि कुछ देर बाद तुम एवरेस्ट कि चोटी (Top) पर होगी। 

 

माउंट एवरेस्ट के टॉप पर पहुंचने पर ।

मेरे दिमाग में सिर्फ यही बातें चल रही थी, और एवरेस्ट का टॉप चल रहा था। मैंने शेरपा को समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह नहीं माना। लेकिन मैं आगे बढ़ती रही। एक से डेढ़ घंटे बाद में एवरेस्ट के टॉप पर थी।

मैंने अपने शेरपा से फोटो लेने को कहा। उसने मुझसे कहा कि, अरुणिमा नीचे चल तेरा Oxygen कभी भी खत्म हो जाएगा। 

लेकिन मैं यह दुनिया को दिखाना चाहती थी कि, अगर इंसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है। इसके लिए उसमे कुछ करने की जिद्द, हिम्मत, हौसला होना चाहिए। क्योंकि इंसान आपाहीज अपने अंगों से होता है, दिमाग से नहीं। जिसके दिमाग में अपंगता आ गई, वह शरीर से कितना ही बलशाली क्यों ना हो, वह अपनी जिंदगी में कभी सफल नहीं हो सकता।

शेरपा ने तिरंगे झंडे के साथ मेरी फोटो निकाली। हद तो तब हो गई जब मैंने अपने शेरपा से अपनी वीडियो भी बनाने को कहा।

इस बार शेरपा मुझ पर बहुत जोर से गुस्सा हुआ। 

8849 मीटर की ऊंचाई पर आप का oxygen खत्म हो रहा हो, और किसी भी पल कुछ भी हो सकता है, और कोई कहे कि भाई मेरी वीडियो बना, तो कोई भी गुस्सा होगा।

शेरपा ने कहा, ‘तू पागल हो गई है क्या ? तुझे मरना है तो तु मर, मैं जा रहा हूं नीचे। 

मैंने उनसे कहा- कुछ नहीं होगा, प्लीज एक वीडियो तो लो। 

क्योंकि कहीं ना कहीं थोड़ा तो मुझे भी लग रहा था, कि शायद मैं जिंदा वापस नहीं जा सकुंगी। 

 

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मैंने अपने शेरपा से भी कहा कि- अगर ऐसा कुछ होता है, तो यह वीडियो भारत (India) तक पहुंचा देना। ताकि यह India के youth तक पहुंच जाए।

क्योंकि मैं चाहती थी कि, दुनिया को यह पता चले की 12 अप्रैल 2011 को मेरा एक्सीडेंट हुआ और 21 मई 2013 को 10:55 पर मैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी (Top of the World) पर थी।

अब सवाल उठता है- पर कैसे ?

इसका जवाब है,  ‘दिल से, दिमाग से। क्योंकि कामयाब होना मेरा जुनून बन चुका था, मेरी जिद बन चुकी थी, मेरी जिंदगी, मेरा पैशन बन चुका था। सोते-जागते हर वक्त मुझे सिर्फ एवरेस्ट ही दिखता था। 

फाइनली उन्होंने मेरा वीडियो लिया और कहा- अरुणिमा फटाफट नीचे भागो।

 

माउंट एवरेस्ट की चोटी से उतरने के क्रम में ।

क्योंकि जब मैं Top पर थी तो कुछ और लोग भी थे, लेकिन सुबह 10:55 पर मैंने Everest summit किया। और 11:00 बजे के बाद अगर एवरेस्ट summit करने की कोशिश कोई भी करता है, तो उसे सुसाइड अटेम्प्ट माना जाता है। क्योंकि उसके बाद मौसम इतना खराब हो जाता है, कि वहां पर चढ़ाई करना नामुमकिन सा हो जाता है।

जब मैंने नीचे आना शुरू किया तो थोड़ी दूर चलने के बाद ही मेरा पूरा oxygen खत्म हो चुका था, और मैं नीचे गिर गई। 

मेरे शेरपा ने कहा- अरुणिमा मुझे यकीन नहीं था कि तू एवरेस्ट फतह कर पाएगी, पर तूने किया। मैं चाहता हूं कि तू जिंदा वापस चल। उठ, खड़ी हो। और वह मुझे उठाने की कोशिश करने लगा। 

मैं खड़ी नहीं हो पा रही थी, पर मेरा कांसेप्ट क्लियर हो चुका था, कि जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था तो मैं 7 घंटे रेलवे ट्रैक पर पड़ी रही, और 49 ट्रेनें वहां से गुजर गई। जब भगवान ने मुझे उस वक्त बचाया है, तो सिर्फ इतिहास रचने के लिए बचाया है। मैं यही सोच रही थी कि तभी एक ब्रिटिश climber नीचे से ऊपर आ रहा था और उसके पास दो oxygen थे।

क्योंकि मौसम खराब हो रहा था, तो उसने एक oxygen को वहीं पर उतार कर फेंका और दूसरे के साथ नीचे जाने लगा। 

मेरा शेरपा भी नीचे जाने लगा। उसने वह ऑक्सीजन लाकर मुझे लगाया।

उसने कहा कि- अरुणिमा तू बहुत Lucky है, कि तुझे यहां पर ऑक्सीजन मिला है। वाकई ऊपर वाला भी चाहता है कि तू जिंदा रहे। तू बहुत लकी है।

जब मैं नीचे आ रहा आ रही थी, तो मेरा पूरा का पूरा prosthetic leg (नकली पैर) ही निकल गया। -60 डिग्री (-60C) तक टेंपरेचर डाउन हो जाता है एवरेस्ट पर। मेरे हाथों की उंगलियां काम नहीं कर रही थी, मेरे हाथों से, उंगलियों से ब्लड निकल रहा था।

मैंने अपने शेरपा से कहा कि- मेरे हाथों की उंगलियां काम नहीं कर रही थी। मेरे हाथों से, उंगलियों से ब्लड निकल रहा था। मेरे हाथों में कोई movement नहीं हो रहा है।

कैसा महसूस होगा आपको, जब आपके पांव नहीं है, और अब हाथ भी काटने पड़े, तो फिर उससे बुरा और क्या हो सकता है।

बेसिकली तीन स्टेज होते हैं-  रेड, ब्लू और ब्लैक।

मेरा पहला स्टेज हो चुका था- रेड। 

मैं बार-बार अपने शेरपा से बोल रही थी कि, भाई मेरा हाथ move नहीं हो रहा है, कुछ हो रहा है।

उसने कहा, अरुणिमा हम जितना नीचे जाएंगे उतना अच्छा होगा। 

मेरा नकली पैर भी निकल चुका था, हाथों में मूवमेंट नहीं था। मेरा शेरपा आखिर तक मुझे चलने को कहेगा, और अगर मैं नहीं चल पाई, तो वह मुझे छोड़ कर आगे बढ़ जाएगा। क्योंकि गलती उसकी भी नहीं होगी। क्योंकि अगर वह मुझे बचाने को वहां पर रुकेगा तो उसे अपनी जान भी गंवानी पड़ेगी, क्योंकि वह स्थिति होती ही इतनी भयावह है।

उस वक्त मेरी आंखों में आंसू आने लगे, और मैंने सोचा क्या करूं, मैनें अपना रोप उठाया और अपने prosthetic leg को घसीटते हुए चलना शुरू किया। कुछ दूर नीचे आने के बाद एक रॉक था, हम उस में घुसे और पैर खोल कर सही किया, फिर नीचे चलना शुरू किया। 

कैंप-4 (Camp- 4) से summit (चढ़ाई) और summit (चढ़ाई) से कैंप- 4 तक 35000 फीट है, और generally लोग 16 से 17 घंटे में इसे summit कर लेते हैं। पर मुझे 28 घंटे लगे। 

 

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हर mountaineer (पर्वतारोही) चाहे वह बाहर का हो या फिर इंडिया का, उन्होंने यह मान लिया था कि अरुणिमा अब जिंदा वापस नहीं आएगी।

जब मैं वापस साउथ कोल (south col) पहुंची, और मैंने टेंट का चैन (zip) खोला, और सब ने मुझे देखा तो बोले- अरे हमें लगा कि तूम नहीं रही, और फिर मुझे जिंदा देखकर सभी को खुशी हुई। 

वे कहती हैं,  सब कुछ हममें है, हम जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं।

उनका सपना है कि वर्ल्ड के जितने भी कॉन्टिनेंट (continent) है, उनके highest pick को summit करें। इनमें से अरुणिमा कई ऊंचाइयों को फतह कर चुकी हैं।

 

 अरुणिमा सिन्हा द्वारा किए गए अन्य चोटियों की चढ़ाई ।

  1. नेपाल का माउंट एवरेस्ट पर्वत (ऊंचाई 8849 मीटर)
  2. अर्जेंटीना का आकोंकागुआ पर्वत (ऊंचाई 6961 मीटर)
  3. यूरोप का एलब्रुस पर्वत (ऊंचाई 5631 मीटर)
  4. अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत (ऊंचाई 5895 मीटर)
  5. ऑस्ट्रेलिया का कोसयूस्को पर्वत 
  6. इंडोनेशिया का कारस्टेंस पिरामिड 

 

अरुणिमा सिन्हा की प्रेरणा ।

जब अरुणिमा सिन्हा अस्पताल में थी, तभी उन्होंने अपने मन में ठान लिया था कि कुछ कर दिखाना है, और दुनिया के सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर भारत का झंडा लहराना है। अरुणिमा को नई ऊर्जा उस समय चल रहे एक टीवी शो ‘टू डू समथिंग’ से मिला। 

इनको दूसरी बड़ी प्रेरणा उस समय भारतीय क्रिकेट टीम के विस्फोटक बल्लेबाज और हरफनमौला खिलाड़ी युवराज सिंह से मिली। जिन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को हराया और अपने देश के लिए खेलने का जज्बा दिखाया था। 

उसके बाद जब वे अपना इलाज कराकर बछेंद्री पाल से मिली तो बछेंद्री पाल ने उनके जोश को और बढ़ाया और उन्हें प्रेरित किया, कि वह माउंट एवरेस्ट फतह कर सकती है। 

बछेंद्री पाल ने उनसे कहा कि- इस स्थिति में तुमने यह निर्णय लिया है, तो तुमने अपने दिल मे एवरेस्ट पहले ही  फतह कर लिया है, अब तो यह सिर्फ लोगों के लिए होगा।

 

आभार ।

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